8 साल तक चलता रहा फर्जी दूतावास! कौन है ये शख्स और क्या हैं स्वयंभू राष्ट्र की असली सच्चाई?

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से हाल ही में गिरफ्तार हुआ हर्षवर्धन जैन एक ऐसा नाम बन गया है, जो 8 साल तक खुद को “राजदूत” बताकर नकली दूतावास चला रहा था और स्वयंभू देशों के नाम पर धोखाधड़ी को अंजाम देता रहा। उसकी गिरफ्तारी के साथ ही कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। यह कोई आम ठग नहीं था, बल्कि एक ऐसा शख्स जिसने न सिर्फ फर्जीवाड़े का एक पूरा ढांचा खड़ा किया बल्कि हाई-प्रोफाइल लोगों के बीच खुद की पहचान भी ‘डिप्लोमैट’ के तौर पर बनाई।


🔶 कौन है हर्षवर्धन जैन?

हर्षवर्धन मूल रूप से गाजियाबाद का रहने वाला है और यहीं के एक कॉलेज से उसने एमबीए की पढ़ाई की थी। इसके अलावा लंदन के एक संस्थान से भी एमबीए डिग्री प्राप्त करने का दावा किया जाता है। उसका पारिवारिक बैकग्राउंड भी प्रभावशाली रहा है — उसके पिता व्यापारी थे और राजस्थान में संगमरमर की खदानों के मालिक थे। यही नहीं, उसके ससुर आनंद जैन कांग्रेस के युवा विंग से भी जुड़े रहे हैं और चंद्रास्वामी जैसे विवादित आध्यात्मिक गुरु से उनके पारिवारिक संबंध भी थे। बताया जाता है कि चंद्रास्वामी ने ही हर्षवर्धन को लंदन भेजा और व्यापार शुरू करवाने में मदद की।

पिता के निधन के बाद जब हर्षवर्धन आर्थिक तंगी में फंसा, तो वह भारत लौटा और गाजियाबाद के कवि नगर स्थित अपने पैतृक आवास को ‘फर्जी दूतावास’ में तब्दील कर दिया। बाद में वह एक बड़ा बंगला किराए पर लेकर उसे ‘वेस्टआर्कटिका के महावाणिज्य दूतावास’ के रूप में दिखाने लगा।


🔶 कैसे चलता था फर्जी दूतावास?

हर्षवर्धन जैन ने वेस्टआर्कटिका, सेबोरगा, लडोनिया और पॉलविया जैसे स्वयंभू (Micronations) देशों के नाम पर लोगों को धोखा देना शुरू किया। वह खुद को इन देशों का “राजनयिक” बताता और इसी पहचान के सहारे लोगों को भ्रमित करता। उसने बंगले के बाहर एक झंडा भी लगा रखा था, जो ‘वेस्टआर्कटिका’ का बताया जाता था। इंस्टाग्राम पर वह खुद को ‘बैरन एचवी जैन’ कहकर प्रचारित करता था। पेज पर कविनगर स्थित बंगले की तस्वीरें, चैरिटी कार्यक्रमों की जानकारी, और राजनयिक शीर्षक वाला विवरण साझा किया गया था।

इतना ही नहीं, उसने फर्जी डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट्स वाली लग्ज़री कारें, फर्जी प्रेस पास, बिजनेस कार्ड और दस्तावेज बनवाए थे ताकि लोगों को उस पर शक न हो। सोशल मीडिया पर वह खुद को प्रतिष्ठित नेताओं जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ दिखाने के लिए एडिट की गई तस्वीरें भी पोस्ट करता था।


🔶 क्या होते हैं ये ‘स्वयंभू देश’?

हर्षवर्धन जिन देशों का प्रतिनिधि होने का दावा करता था, वे असल में कोई मान्यता प्राप्त देश नहीं हैं। इन्हें ‘Micronations’ यानी स्वयंभू राष्ट्र कहा जाता है। ये आम तौर पर पहले से मौजूद किसी देश के क्षेत्र में खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर देते हैं, लेकिन इन्हें किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था (जैसे संयुक्त राष्ट्र) से मान्यता नहीं मिलती। इनके झंडे, मुद्रा, पासपोर्ट और सरकारी मुहरें तो होती हैं, लेकिन इन्हें किसी भी कानूनी व्यवस्था में वैध नहीं माना जाता।

वेस्टआर्कटिका — यह कोई असल देश नहीं है, बल्कि इसे 2001 में एक अमेरिकी नौसैनिक ट्रैविस मैक्हेनरी ने अंटार्कटिक के निर्जन इलाके में स्थापित करने का दावा किया था। इसकी वेबसाइट है, लेकिन यह न भारत सरकार, न संयुक्त राष्ट्र और न किसी अन्य देश द्वारा मान्यता प्राप्त है।

सेबोरगा — इटली के एक छोटे से गांव को स्वयंभू देश घोषित कर दिया गया। इसका क्षेत्रफल महज 14 वर्ग किमी है। इसे “प्रिंसिपैलिटी ऑफ सेबोरगा” कहा जाता है लेकिन यह भी इटली का ही हिस्सा माना जाता है।

लडोनिया — स्वीडन के कुलाबर्ग क्षेत्र में 1986 में एक कलाकार ने विरोध स्वरूप इस ‘रॉयल रिपब्लिक ऑफ लडोनिया’ की घोषणा की थी। यहां भी इसे स्वतंत्र देश की मान्यता नहीं मिली है।


🔶 पुलिस के पास क्या सबूत हैं?

22 जुलाई को पुलिस ने छापा मारा और कविनगर स्थित बंगले से कई फर्जी दस्तावेज, वाहन, झंडे, मुहरें, डिप्लोमैटिक पास, फर्जी आइडेंटिटी कार्ड, नकली बिजनेस कार्ड और इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन से जुड़ी सामग्री जब्त की। इसके अलावा सोशल मीडिया पोस्ट, फर्जी वेबसाइट्स और संस्थाओं से जुड़े कई डिजिटल सबूत भी इकठ्ठा किए गए हैं।


🔶 पुलिस क्या कहती है?

एसटीएफ के एएसपी राजकुमार मिश्र ने बताया कि हर्षवर्धन न केवल एक हाई-प्रोफाइल ठग था, बल्कि वह लंबे समय से सोशल, राजनीतिक और कॉर्पोरेट सरगर्मियों में भी खुद को घुसाने की कोशिश कर रहा था। उसकी गिरफ्तारी के बाद पता चला कि वह 2017 से लगातार खुद को राजदूत बताकर ठगी कर रहा था।


🔶 निष्कर्ष

हर्षवर्धन जैन का मामला सिर्फ एक फर्जी पहचान तक सीमित नहीं है, यह एक बड़ी साजिश, धोखाधड़ी और सिस्टम की आंख में धूल झोंकने की कोशिश थी। स्वयंभू देशों के नाम पर राजनयिक बनने का सपना वह इतना गंभीरता से जी रहा था कि उसके झूठ को पहचानने में सिस्टम को भी 8 साल लग गए। उसकी गिरफ्तारी न केवल एक बड़ी ठगी का भंडाफोड़ है, बल्कि यह भी दिखाती है कि डिजिटल और सामाजिक माध्यमों का कैसे गलत इस्तेमाल कर कोई शख्स वर्षों तक खुद को एक ‘दूतावास’ का मुखिया बता सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home1/theindi2/public_html/wp-includes/functions.php on line 5471