स्मार्ट सिटी या खतरे की घंटी? देहरादून की गलियों में उलझे तार, बढ़ रहा हादसों का डर

देहरादून जिसे उत्तराखंड की राजधानी और भविष्य का ‘स्मार्ट सिटी’ कहा जा रहा है, आज तारों के मकड़जाल में बुरी तरह उलझा हुआ है। शहर की सड़कों, गलियों और चौराहों पर इंटरनेट, टेलीफोन और केबल टीवी कंपनियों के अव्यवस्थित तारों की भरमार है। हर खंभा, हर सड़क और हर मोड़ तारों से लदा हुआ दिखता है, जिससे शहर की सुंदरता तो बिगड़ी ही है, साथ ही यह अब जानलेवा खतरे का रूप ले चुका है।

खतरे की तस्वीर: शहर बना हादसों का मैदान
शहर में बिजली के खंभों पर शॉर्ट-सर्किट की घटनाएं आम होती जा रही हैं। सड़क किनारे लटके हुए या टूटे तार दोपहिया वाहन चालकों और पैदल यात्रियों के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं। कई स्थानों पर तार सड़क पर फैले हुए हैं, जिससे राहगीरों को या तो सिर झुकाकर चलना पड़ता है या रास्ता बदलना पड़ता है।

पटेलनगर इंडस्ट्रियल एरिया से लेकर सहारनपुर रोड, जीएमएस रोड, घंटाघर, राजपुर रोड, चकराता रोड, कांवली रोड, प्रिंस चौक, रिस्पना पुल और हरिद्वार बाईपास तक — पूरा शहर इस जाल में फंसा हुआ है।

प्रशासनिक सुस्ती: जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं
हालात इतने खराब हैं कि न तो ऊर्जा निगम और न ही नगर निगम इस दिशा में गंभीरता से कोई ठोस कदम उठा रहे हैं। ‘राइट ऑफ वे पॉलिसी’ के तहत कार्रवाई करने की जरूरत महसूस ही नहीं की जा रही है। अधिकारियों का तर्क है कि पॉलिसी में जुर्माना या निगरानी का स्पष्ट प्रावधान नहीं है, जिससे कोई विभाग जिम्मेदारी लेने को राजी नहीं होता।

कहां-कहां बिगड़े हालात?

  • पटेलनगर के लालपुल चौक से लेकर कारगी चौक तक खंभों पर तारों के गुच्छे लटके हैं।
  • झंडा बाजार में इतनी ज्यादा मात्रा में तार लिपटे हैं कि यह तय करना मुश्किल है कि कौन से तार वैध हैं और कौन से अवैध।
  • सहारनपुर रोड पर तो केबल सड़क पर झूल रहे हैं जिससे ट्रैफिक बाधित होता है।
  • कांवली रोड पर खंभों का भार इतना बढ़ गया है कि कई पोल झुकने लगे हैं।
  • गांधी रोड पर भी खंभों पर तारों का जाल लिपटा हुआ है, और सर्विस प्रोवाइडर बिना अनुमति खंभों पर मनमर्जी से तार बिछा रहे हैं।

न कार्रवाई, न सुधार
ऊर्जा निगम खुद मानता है कि कई खंभों पर बिना अनुमति तार लगाए गए हैं। निगम ने कुछ जगह अभियान चलाकर तार हटाए, लेकिन सर्विस ऑपरेटर दोबारा वही तार जोड़ देते हैं। इस समस्या का स्थायी समाधान केवल कठोर प्रशासनिक कार्रवाई और निरंतर निगरानी से ही संभव है, जो फिलहाल पूरी तरह नदारद है।

शहरवासी और पर्यटक दोनों परेशान
लगभग आठ लाख की आबादी वाला देहरादून इस समस्या से सीधे प्रभावित है। बाहर से आने वाले पर्यटक भी जब शहर की यह बदरंग तस्वीर देखते हैं तो ‘स्मार्ट सिटी’ की अवधारणा पर सवाल उठते हैं।

पुरानी कोशिशें हुईं बेअसर
करीब दो साल पहले नगर निगम ने सभी ऑपरेटरों की बैठक बुलाकर तारों को व्यवस्थित करने का निर्देश दिया था। कुछ समय तक सुधार दिखा लेकिन फिर वही हालात लौट आए। तारों की अनदेखी और अफसरों की निष्क्रियता ने शहर को फिर से उसी हालत में पहुंचा दिया है।

अब जरूरत है एक ठोस, कड़े और निरंतर अभियान की, ताकि देहरादून सच में स्मार्ट सिटी बन सके और उसकी सूरत बदले।

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