
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 29 जुलाई 2025 को एक अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर सुनवाई की तारीख तय की है। यह मामला भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए एक अभूतपूर्व संदर्भ से जुड़ा है, जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या विधानसभाओं से पारित किसी विधेयक (बिल) पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की मंजूरी के लिए कोई निश्चित “समयसीमा” तय की जा सकती है?
इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आगामी 19 अगस्त से 10 सितंबर 2025 के बीच सुनवाई की तारीख निर्धारित की है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि इन तिथियों के दौरान सुनवाई के कार्यक्रम में किसी भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा, जिससे इस संवैधानिक बहस को समयबद्ध और निष्पक्ष तरीके से निपटाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के संदर्भ का विरोध करने वाले पक्षों की ओर से अधिवक्ता अमन मेहता और निशा रोहतगी को नोडल वकील के रूप में नियुक्त किया है। इन अधिवक्ताओं से कहा गया है कि वे इस विषय पर अपना पूरा दस्तावेज़ी संकलन (कंपाइलेशन) तैयार कर अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें, ताकि सभी पक्षों की बात समान रूप से सुनी जा सके।
यह मामला सिर्फ एक तकनीकी प्रश्न नहीं है, बल्कि भारत के संघीय ढांचे, विधायी प्रक्रिया और लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव से जुड़ा हुआ है। अब तक कई बार देखा गया है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक लंबित रखा जाता है, जिससे निर्वाचित सरकारों के विधायी कार्यों पर प्रभाव पड़ता है।
इसलिए यह सुनवाई विशेष महत्व की मानी जा रही है और इसके फैसले से भविष्य में बिल पास होने के बाद उन्हें मंज़ूरी मिलने की प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और समयबद्धता सुनिश्चित हो सकती है।
यह मामला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के आलोक में भी देखा जा रहा है, जिसमें राज्यपाल की भूमिका और उनके विकल्पों को लेकर व्याख्या दी गई है, लेकिन समयसीमा का प्रश्न अब तक अस्पष्ट रहा है।
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जो तय करेगी कि लोकतंत्र के इस महत्त्वपूर्ण पहलू में कानूनी स्पष्टता लाने का समय आ गया है या नहीं।