
देहरादून। उत्तराखंड में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर अपना परचम लहराते हुए जीत हासिल की है, लेकिन यह जीत कई सियासी घरानों के लिए झटका भी बनकर आई है। पंचायत स्तर की इस जंग में जहां पार्टी ने जिले-दर-जिले अपनी पकड़ मजबूत की, वहीं अपने-अपने परिवार के सदस्यों को मैदान में उतारने वाले भाजपा के दिग्गज नेताओं को जनता ने करारा सबक सिखाया।
भाजपा ने इन चुनावों में कांग्रेस पर ‘परिवारवाद’ का आरोप लगाते हुए तीखा हमला बोला था, लेकिन सच्चाई यह रही कि खुद भाजपा के कई बड़े नेताओं ने अपने रिश्तेदारों को मैदान में उतारकर वही गलती दोहरा दी, जिसके खिलाफ वे आवाज़ उठा रहे थे। परिणामस्वरूप, आम मतदाता ने इन प्रयासों को नकार दिया और साफ संदेश दिया कि अब काम के आधार पर वोट मिलेगा, न कि खून के रिश्तों के नाम पर।
🟠 किसे कहां मिली हार: दिग्गजों की साख पर लगा प्रश्नचिन्ह
पंचायत चुनाव में कई भाजपा नेताओं के करीबी रिश्तेदारों को जनता ने बुरी तरह नकारा, जैसे:
- नैनीताल से भाजपा विधायक सरिता आर्या के बेटे रोहित आर्या को हार का सामना करना पड़ा।
- सल्ट विधायक महेश जीना के बेटे करन जीना को स्याल्दे बबलिया क्षेत्र पंचायत सीट से हार मिली।
- बदरीनाथ के पूर्व विधायक राजेंद्र भंडारी की पत्नी रजनी भंडारी को भी पराजय का सामना करना पड़ा।
- लोहाघाट के पूर्व विधायक पूरन सिंह फर्त्याल की बेटी चुनाव नहीं जीत सकीं।
- लैंसडाउन विधायक दिलीप रावत की पत्नी को भी हार का मुंह देखना पड़ा।
- भीमताल विधायक राम सिंह कैड़ा की बहू और
- चमोली के भाजपा जिलाध्यक्ष गजपाल भर्तवाल जैसे तमाम पार्टी चेहरों के परिजन भी चुनाव में पिछड़ गए।
🟡 राजनीतिक विश्लेषण: क्या परिवारवाद की सजा मिली भाजपा को?
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि भाजपा की यह ऐतिहासिक जीत और सीटों में बढ़ोतरी निश्चित तौर पर पार्टी के लिए उत्साहजनक है, लेकिन अगर टिकट वितरण में परिवारवाद को प्राथमिकता न दी गई होती, और ज़मीनी स्तर पर लोकप्रिय तथा मेहनती कार्यकर्ताओं को उम्मीदवार बनाया गया होता, तो यह जीत और अधिक प्रभावशाली हो सकती थी।
एक तरफ भाजपा ने कांग्रेस पर परिवारवाद को लेकर तीखा हमला बोला, वहीं दूसरी तरफ खुद उसी जाल में फंस गई। परिणामस्वरूप, मतदाताओं ने परिवारवाद को एक स्वर में नकारते हुए पार्टी को यह स्पष्ट संदेश दिया कि राजनीति अब वंश के आधार पर नहीं, कार्य के आधार पर चलेगी।
🟢 इतिहास रचने वाली जीत: बढ़ी सीटें, बना रिकॉर्ड
हालांकि परिवारवाद का दंश झेलने के बावजूद भाजपा ने इस बार पंचायत चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया है। 2019 के चुनाव में जहां भाजपा को कुल 200 सीटें मिली थीं (जिसमें हरिद्वार शामिल था), वहीं इस बार हरिद्वार को छोड़कर ही पार्टी को 216 सीटें प्राप्त हुईं। यदि हरिद्वार की 44 सीटों को भी जोड़ लिया जाए तो यह आंकड़ा बढ़कर 260 सीटों तक पहुंच जाता है।
यह जीत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार की पंचायत स्तर पर अब तक की सबसे बड़ी सफलता मानी जा रही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने इसे “ऐतिहासिक जीत” बताते हुए कहा कि “राज्य के सभी जिलों में भाजपा के बोर्ड बनेंगे, यह हमारे कार्यकर्ताओं की मेहनत और जनता के विश्वास का प्रतीक है।”
🔴 जनता का संदेश: अब नहीं चलेगा ‘खून का खेल’, चाहिए ज़मीनी नेता
इस चुनाव ने यह भी साबित कर दिया है कि जनता अब जागरूक है और चुनाव में केवल पार्टी का नाम या परिवार का चेहरा देखकर वोट नहीं डालती। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो नेता जनता के बीच काम करेगा, उसी को समर्थन मिलेगा — चाहे वह किसी भी पार्टी का क्यों न हो।
इस बार की पंचायत राजनीति ने न केवल सत्ता पक्ष के सामने चुनौती खड़ी की है, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी संकेत दे दिए हैं कि संगठन को अब योग्य, मेहनती, और ज़मीनी नेताओं को ही आगे लाना होगा।