
देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मांस कारोबार की अनियमितता और प्रशासनिक उदासीनता अब आमजन के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा बनती जा रही है। नगर निगम की हालिया जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। शहर में 700 से अधिक मांस की दुकानें बिना किसी वैध लाइसेंस और नगर निगम की अनापत्ति प्रमाण-पत्र (NOC) के अवैध रूप से संचालित हो रही हैं। यही नहीं, करीब 2000 होटल और रेस्टोरेंट्स बिना किसी अनुमति के नॉनवेज (मांसाहारी खाद्य पदार्थ) परोस रहे हैं।
नगर निगम ने इस गंभीर स्थिति को देखते हुए अब इन अवैध दुकानों और रेस्टोरेंट्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है। संबंधित दुकानदारों और होटल मालिकों को नोटिस थमाए जा रहे हैं और चेतावनी दी गई है कि जल्द ही नियमानुसार दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
देहरादून में नहीं है कोई वैध स्लाटर हाउस, फिर भी खुलेआम हो रहा कटान
एक और हैरान करने वाली बात यह है कि देहरादून में वर्तमान समय में कोई वैध स्लाटर हाउस (कटान केंद्र) मौजूद नहीं है। इसके बावजूद शहर की सैकड़ों दुकानों में मुर्गों, बकरों और मछलियों का खुलेआम कटान किया जा रहा है, जो कि पूर्ण रूप से अवैध और गैरकानूनी है।
मौजूदा नियमों के अनुसार, किसी भी प्रकार का पशु कटान केवल प्राधिकृत स्लाटर हाउस में ही किया जा सकता है। इसके अलावा, मांस को बाजार में बेचने से पूर्व उसका चिकित्सकीय परीक्षण भी अनिवार्य होता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह मानव उपभोग के लिए सुरक्षित है। लेकिन वर्तमान हालात इसके ठीक उलट हैं।
नगर निगम की कार्रवाई तेज, चिन्हीकरण प्रक्रिया शुरू
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए नगर निगम ने तेजी से कार्रवाई शुरू कर दी है। अधिकारियों ने पूरे शहर में मांस की दुकानों और होटलों की चिन्हीकरण प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। जिन विक्रेताओं के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें नोटिस जारी किए जा रहे हैं। नगर निगम ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस सप्ताह के अंत तक वैध और अवैध इकाइयों की विस्तृत रिपोर्ट जिलाधिकारी श्री सविन बंसल को सौंपी जाएगी, जिन्होंने स्वयं इस मामले में रिपोर्ट तलब की है।
कहां से आ रहा है देहरादून का मांस? प्रमाणिकता पर सवाल
देहरादून नगर क्षेत्र ‘रेड ज़ोन’ श्रेणी में आता है, जहां स्लाटर हाउस का संचालन प्रतिबंधित है। नगर निगम कई वर्षों से बंद पड़े पुराने स्लाटर हाउस को फिर से शुरू करने या नया स्लाटर हाउस स्थापित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति लेने के प्रयास कर रहा है, लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिल सकी है।
इस स्थिति में अधिकांश विक्रेताओं द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि वे अन्य राज्यों से मीट मंगवा रहे हैं, लेकिन इस पर कोई निगरानी या प्रमाणिकता व्यवस्था मौजूद नहीं है। इससे न केवल स्वास्थ्य, बल्कि खाद्य सुरक्षा पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
बिना परीक्षण के मांस से स्वास्थ्य पर खतरा, पर्यावरण भी हो रहा प्रदूषित
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बिना जांचे-परखे मांस का सेवन फूड प्वाइजनिंग, टाइफाइड, ब्रुसेलोसिस जैसी जीवाणुजनित बीमारियों का कारण बन सकता है। इसके अतिरिक्त, मांस के अवैध और अस्वच्छ निस्तारण से शहर में पर्यावरण प्रदूषण भी गंभीर रूप ले रहा है।
खासतौर पर वर्षा ऋतु में जब तापमान और नमी अधिक होती है, उस समय खराब गुणवत्ता के मांस के सेवन से बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। वर्तमान समय में अस्पतालों में फूड प्वाइजनिंग और पेट से संबंधित समस्याओं के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
निष्कर्ष: स्वास्थ्य, कानून और पर्यावरण तीनों पर मंडरा रहा संकट
देहरादून में मांस कारोबार से जुड़ी अव्यवस्था और नियमों की अनदेखी अब केवल प्रशासनिक विषय नहीं रही, बल्कि यह सीधे तौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा से जुड़ा संकट बन चुकी है। आने वाले दिनों में नगर निगम की कार्रवाई कितनी प्रभावी होती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। लेकिन फिलहाल आवश्यकता है सख्त नियमों की अनुपालना सुनिश्चित करने और आम जनता को इस गंभीर मुद्दे के प्रति जागरूक करने की।