
नई दिल्ली / मुंबई: 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम विस्फोट मामले में नया मोड़ तब आया, जब इस केस की मुख्य आरोपी रहीं भोपाल से सांसद और भाजपा नेता साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने एक बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा है कि जांच एजेंसियों ने उन पर दबाव डाला था कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत का नाम लें।
प्रज्ञा ठाकुर का यह बयान उस समय आया है जब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने उन्हें और अन्य छह आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया है।
कोर्ट ने कहा – सबूत नहीं, गवाह पलटे
NIA कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, और पांच अन्य के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पाए गए। अदालत ने यह भी कहा कि इस केस में कई गवाह अपने पहले दिए गए बयानों से पलट गए, जिससे अभियोजन पक्ष की स्थिति कमजोर हो गई।
गौरतलब है कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए धमाकों में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले ने देशभर में राजनीतिक और धार्मिक तनाव को जन्म दिया था और इसे ‘भगवा आतंकवाद’ से जोड़ा गया था।
गवाहों ने भी लगाए दबाव के आरोप
केवल प्रज्ञा ठाकुर ही नहीं, मामले से जुड़े कई गवाहों ने भी अदालत में दावा किया कि उनसे दबाव डालकर बयान लिए गए थे। एक गवाह ने तो यहां तक कहा कि उससे जबरन सीएम योगी आदित्यनाथ और आरएसएस नेताओं का नाम लेने को कहा गया।
इन गवाहों के बयान अदालत के समक्ष यह साबित करते हैं कि मामले की जांच में राजनीतिक एंगल घुसाया गया था, जिससे निष्पक्षता पर सवाल खड़े हुए।
पूर्व ATS अधिकारी का चौंकाने वाला बयान
मामले में एक और बड़ा खुलासा पूर्व एटीएस अधिकारी मेहबूब मुजावर ने किया। उन्होंने कहा कि उन्हें आदेश दिया गया था कि वे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करें, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया क्योंकि उनके पास ऐसा कोई सबूत नहीं था।
मुजावर ने यह भी आरोप लगाया कि पूरी जांच प्रक्रिया भगवा आतंकवाद की एक झूठी तस्वीर गढ़ने की कोशिश थी।
राजनीति या साजिश? मामला बना फिर चर्चा का विषय
इस पूरे मामले ने एक बार फिर देश में यह बहस छेड़ दी है कि क्या कुछ संवेदनशील आतंकी मामलों की जांच को राजनीतिक रूप से प्रभावित किया गया?
प्रज्ञा ठाकुर के इस बयान से भाजपा समर्थक खेमा जहां “राजनीतिक षड्यंत्र” की बात कह रहा है, वहीं विपक्ष इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे हुए है।
निष्कर्ष: 15 साल बाद मिला न्याय, लेकिन सवाल बाकी हैं
मालेगांव विस्फोट केस, जिसने सालों तक देश की राजनीति, जांच एजेंसियों और मीडिया में हलचल मचाई, अब कानूनी तौर पर बंद हो चुका है — लेकिन जांच में कथित दबाव, गवाहों के पलटने, और पूर्व अधिकारियों के खुलासों ने नई बहस को जन्म दे दिया है।
क्या यह सिर्फ एक कानूनी लड़ाई थी या इसके पीछे कुछ और मकसद थे? यह सवाल अब भी लोगों के मन में गूंज रहा है। आने वाले समय में इस पर और भी राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आ सकती हैं।