
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड आंदोलन के महानायक और जेएमएम के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन अब पंचतत्व में विलीन हो गए। 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया था। आज, 5 अगस्त को उन्हें उनके पैतृक गांव नेमरा (जिला रामगढ़) में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई।
सुबह से ही रांची स्थित आवास पर श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया था। हजारों की संख्या में आमजन, समर्थक, कार्यकर्ता और नेता अंतिम दर्शन के लिए जुटे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, अपने पिता की अंतिम यात्रा की अगुवाई कर रहे थे। पार्थिव शरीर को पहले विधानसभा ले जाया गया, जहां उन्हें विधायकों और गणमान्य व्यक्तियों ने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए।
देशभर से कई बड़े नेता रांची पहुंचे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, शिबू सोरेन को अंतिम विदाई देने के लिए दिल्ली से रांची पहुंचे। इसके अलावा तेजस्वी यादव, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन और शताब्दी रॉय, आप सांसद संजय सिंह, पप्पू यादव, और अन्य कई नेताओं ने गुरुजी को श्रद्धांजलि दी।
शिबू सोरेन की भाभी दीपमणि सोरेन ने आंखों में आंसू लिए कहा कि “गुरुजी का जीवन अत्यंत सादा था। उन्हें ताजा हरी जैविक सब्जियां बेहद पसंद थीं। जब भी वे गांव आते, हम उनके लिए खेतों से बैंगन, मूली के पत्ते, और बांस के अंकुर लाते।”
शिबू सोरेन का अंतिम सफर, रांची से उनके गांव तक जगह-जगह श्रद्धांजलि के रूप में रुका। सड़क के किनारे खड़े लोग ‘गुरुजी अमर रहें’ के नारों से उन्हें विदा कर रहे थे। इस दौरान रामगढ़ जिले में शोक का माहौल रहा। झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स ने दोपहर 1 बजे तक सभी प्रतिष्ठान बंद रखने की अपील की थी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा, “यह भवन उनका संघर्ष का गवाह रहा है। जब मैं मुख्यमंत्री था, तब मैंने उनके लिए जीवन भर के लिए आवास स्वीकृत किया था। आज मैं उसी घर में उन्हें अंतिम बार श्रद्धांजलि देने आया हूं।”
झारखंड सरकार ने अंतिम संस्कार के लिए पूरे राजकीय सम्मान की व्यवस्था की। पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर, बंदूकों की सलामी और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ गुरुजी को अंतिम विदाई दी गई।
कई नेताओं ने शिबू सोरेन को भारत रत्न देने की भी मांग की है। मंत्री इरफान अंसारी ने कहा कि “गुरुजी गरीबों की आवाज़ थे। उन्होंने झारखंड को पहचान दी। अब वक्त है कि भारत सरकार उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान दे।”
शिबू सोरेन भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन झारखंड और आदिवासी आंदोलन के इतिहास में उनका योगदान अमिट और अमर रहेगा। वे संघर्ष, सेवा और स्वाभिमान के प्रतीक थे।