
रूस से व्यापार को लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए आरोपों और टैरिफ की धमकियों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई बहस छेड़ दी है। भारत ने पहली बार इन आरोपों पर खुलकर प्रतिक्रिया दी है और अमेरिका व यूरोपीय संघ (EU) पर दोहरे रवैये का आरोप लगाया है। नई दिल्ली ने तथ्यों और आंकड़ों के साथ यह दिखाया है कि कैसे अमेरिका और यूरोपीय देश खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं, जबकि भारत को नैतिकता के नाम पर निशाना बनाया जा रहा है।
भारत पर ट्रंप का दोहरा रवैया हाल के हफ्तों में डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल और हथियार खरीदने को लेकर भारत पर भारी-भरकम टैरिफ और जुर्माना लगाने की धमकी दी थी। भारत ने लंबे समय तक संयम बरतते हुए किसी प्रतिक्रिया से परहेज किया, लेकिन अब भारत ने सख्त लहजे में अमेरिका और ईयू के दोहरे मापदंडों को उजागर किया है।
भारत की प्रतिक्रिया भारत ने सोमवार को कहा कि वह एक संप्रभु राष्ट्र है और अपनी राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर जरूरी कदम उठाएगा। साथ ही भारत ने कहा कि अमेरिका और ईयू खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं, फिर भारत को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? भारत ने बताया कि अमेरिका अपने परमाणु और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड और पैलेडियम खरीद रहा है। साथ ही फर्टिलाइजर और केमिकल्स का आयात भी जारी है।
ईयू की पोल भी खोली भारत ने यूरोपीय संघ पर भी तगड़ा हमला किया। आंकड़ों के अनुसार, ईयू ने 2024 में रूस से 1.64 करोड़ टन एलएनजी का आयात किया, जो 2022 के 1.52 करोड़ टन के रिकॉर्ड से भी अधिक है। यानी रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी यूरोपीय देश लगातार ऊर्जा आयात कर रहे हैं। इसके बावजूद भारत को रूसी तेल की खरीद को लेकर दोषी ठहराया जा रहा है।
भारत बनाम अमेरिका-ईयू व्यापार तुलना भारत ने ट्रंप के बयानों पर तर्कसंगत आंकड़ों के साथ जवाब दिया। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद 2023 में रूस का कुल निर्यात 394 अरब डॉलर रहा, जिसमें चीन पहले और भारत दूसरे स्थान पर रहा।
- अमेरिका-भारत व्यापार: FY2024 में दोनों के बीच 130 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें भारत ने 87 अरब डॉलर का निर्यात किया। अमेरिका से आयात मात्र 42 अरब डॉलर का रहा। यदि ट्रंप प्रशासन 25% टैरिफ लागू करता है, तो इससे भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे और भारत का निर्यात प्रभावित हो सकता है।
- ईयू-भारत व्यापार: भारत ने FY2024 में यूरोपीय संघ को 20.5 अरब डॉलर का तेल निर्यात किया, जबकि 2019 में यह केवल 5.9 अरब डॉलर था। इस वृद्धि का मुख्य कारण रूस से सस्ता तेल खरीदकर उसे रिफाइन करके पश्चिमी देशों को बेचना रहा है। अगर ईयू रिफाइंड रूसी तेल पर बैन लगाता है, तो भारत की रिफाइनिंग इंडस्ट्री को बड़ा झटका लगेगा।
अमेरिका और यूरोप की ‘चुपचाप डील’ भारत का कहना है कि जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तब अमेरिका और यूरोप खुद रूस से तेल और अन्य उत्पाद खरीद रहे थे। उन्होंने भारत को भी प्रेरित किया कि वह रूस से तेल खरीदे ताकि वैश्विक ऊर्जा संकट से निपटा जा सके। भारत ने जब रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया, तो पश्चिमी देशों के लिए यह लाभ का सौदा साबित हुआ। लेकिन अब जब भारत ने खुद को स्थायी ऊर्जा स्रोत के रूप में मजबूत किया है, तो उसे निशाना बनाया जा रहा है।
आंकड़े बताते हैं कि यूरोपीय संघ ने युद्ध शुरू होने के बाद से रूस से 105.6 अरब डॉलर का तेल और गैस आयात किया, जो रूस के 2024 के सैन्य बजट का 75% है। अकेले 2024 में ईयू ने रूस से एलएनजी आयात को 9% तक बढ़ा दिया है।
निष्कर्ष भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वह अपनी ऊर्जा और आर्थिक सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा। रूस से तेल खरीदना भारत का रणनीतिक फैसला है, न कि किसी राजनीतिक दबाव का नतीजा। अमेरिका और ईयू के दोहरे मापदंड अब वैश्विक मंच पर उजागर हो चुके हैं और भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और आत्मनिर्भरता का परिचायक बनते जा रहे हैं।