“आपदा की जद में उत्तराखंड: 67 भूस्खलन ज़ोन बन सकते हैं बड़ी त्रासदी का कारण”

उत्तराखंड की विषम भौगोलिक स्थिति वर्ष दर वर्ष इसे प्राकृतिक आपदाओं का केंद्र बनाती जा रही है। विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में, बरसात के दौरान हालात बार-बार आपदा जैसे बनते हैं। इनमें सबसे अधिक चिंता का विषय हैं राज्य में चिन्हित अतिसंवेदनशील भूस्खलन क्षेत्र, जो किसी भी वक्त जानलेवा रूप ले सकते हैं।

राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड में वर्तमान में 67 सक्रिय और अति संवेदनशील भूस्खलन क्षेत्र मौजूद हैं। इन क्षेत्रों के सक्रिय होते ही न केवल सड़क मार्ग अवरुद्ध होते हैं, बल्कि आस-पास की बस्तियों में रहने वाले लोगों की जानमाल को भी गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है। इस वर्ष अब तक प्रदेश में पांच नए भूस्खलन क्षेत्र भी चिन्हित किए जा चुके हैं, जो दर्शाता है कि समस्या लगातार गहराती जा रही है।

उत्तराखंड में भूस्खलन कोई नई आपदा नहीं है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इनकी आवृत्ति और तीव्रता दोनों में वृद्धि देखी गई है। खासतौर पर विकास कार्यों जैसे सड़क निर्माण, सुरंगों की खुदाई, और अत्यधिक निर्माण गतिविधियों वाले क्षेत्रों में नए भूस्खलन क्षेत्र तेजी से उभरते दिखे हैं। यह प्रवृत्ति केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल जैसे अन्य पर्वतीय राज्यों में भी देखी जा रही है।

चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी भूस्खलन के सही कारणों की वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट पहचान नहीं हो पाई है। नतीजतन, इन क्षेत्रों में स्थायी समाधान नहीं निकल पाए हैं। मानसून के दौरान ये ज़ोन सक्रिय हो जाते हैं, और तब तक इंतज़ार किया जाता है जब तक जानमाल की हानि न हो जाए। उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 से 2025 के बीच दस वर्षों में राज्य में कुल 4,662 भूस्खलन घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 319 लोगों की जान गई और 192 से अधिक लोग घायल हुए। इसके अलावा हजारों करोड़ की संपत्ति नष्ट हो चुकी है।

वर्षाकाल के दौरान कई स्थानों पर नए भूस्खलन क्षेत्र बनते जा रहे हैं, जिससे स्थानीय जनजीवन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है। तमाम वैज्ञानिक अनुसंधान, आपदा प्रबंधन कार्यशालाएं और बजट आवंटन के बावजूद अभी तक इस समस्या का कोई ठोस और स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है।

हालांकि अब केंद्र सरकार ने इस दिशा में कुछ सकारात्मक पहल की है। हाल ही में केंद्र ने 125 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मंजूर की है, जो राज्य के पांच अति संवेदनशील भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों को स्थिर करने में खर्च की जाएगी। उत्तराखंड सरकार ने केंद्र को एक विस्तृत कार्ययोजना भेजी है, जिसमें प्रदेश के कुल 32 प्रमुख भूस्खलन स्थलों का उल्लेख करते हुए, इनके स्थायी उपचार के लिए अतिरिक्त आर्थिक सहायता की मांग की गई है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते भूस्खलन के संवेदनशील क्षेत्रों की वैज्ञानिक मैपिंग, स्थिरता परीक्षण, और भू-संरचनात्मक उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो उत्तराखंड में आपदा की घटनाएं और विकराल रूप ले सकती हैं। यही समय है जब सरकार, वैज्ञानिक संस्थान और समाज मिलकर इन खतरों से निपटने के लिए एक स्थायी रणनीति अपनाएं।

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