
अगले विधानसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड कांग्रेस में राजनीतिक परिदृश्य में हलचल बढ़ गई है। यह चर्चा जोरों पर है कि क्या पार्टी हाईकमान वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा पर भरोसा बनाए रखेगा या फिर नया नेतृत्व प्रदेश की सियासी परिस्थितियों को देखते हुए सामने आएगा। दो वर्ष पहले ही नियुक्त जिला कांग्रेस अध्यक्षों को बदलने के लिए एआईसीसी ने पर्यवेक्षकों की तैनाती की थी, जिससे पार्टी संगठन में आमूलचूल बदलाव की तैयारी को लेकर संकेत मिले।
इस तैनाती ने साफ कर दिया कि कांग्रेस हाईकमान संगठन को मजबूती देने और नए सिरे से खड़ा करने के प्रति गंभीर है। इसी रणनीति के तहत अब प्रदेश अध्यक्ष के पद में बदलाव की चर्चाएँ तेज हो गई हैं। कांग्रेस उत्तराखंड में सत्ताधारी दल के साथ कड़ी टक्कर में है, लेकिन लगातार दो विधानसभा चुनावों में हार और लोकसभा चुनाव में पांच में से एक भी सीट न जीत पाने से पार्टी के मनोबल पर असर पड़ा है।
नगर निकाय और पंचायत चुनावों के परिणाम भी पार्टी के लिए कोई बड़ी राहत नहीं रहे। इस स्थिति में हाईकमान ने जिला इकाइयों को मजबूत करने की जिम्मेदारी सीधे अपने हाथों में ले ली। यह प्रदेश कांग्रेस के लिए पहला मौका है जब जिला स्तर पर संगठन को सीधे हाईकमान ने संचालित किया। इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष द्वारा भेजी जाने वाली जिलाध्यक्षों की सूची को ही अनुमोदित किया जाता था। इस बदलाव ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी संभावित बदलाव की चर्चाओं को और हवा दी है।
वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने मई 2025 में अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा किया है। इस दौरान उन्हें नई कार्यकारिणी बनाने के बजाय पुरानी कार्यकारिणी के साथ काम करना पड़ा। हाईकमान ने उन्हें कार्यकारिणी सौंपने के बजाय वरिष्ठ नेताओं और विधायकों की समन्वय समिति गठित करने का विकल्प चुना। अब यह सवाल है कि विधानसभा चुनाव तक माहरा अपने पद पर रहेंगे या इससे पहले नया अध्यक्ष नियुक्त होगा।
चर्चाएँ यह भी हैं कि पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव से पहले नए चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष के रूप में लाकर संगठन में जान फूंक सकती है। वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष की गतिविधियों और टिकट वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए इस पद के कई दावेदार सामने हैं। इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, गणेश गोदियाल, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत शामिल हैं।
साथ ही, कांग्रेस के शीर्ष नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की ओबीसी समन्वय की सक्रियता को देखते हुए पार्टी हरिद्वार या ऊधम सिंह नगर जिलों से किसी नए चेहरे को सामने ला सकती है। यह रणनीति पार्टी के लिए अप्रत्याशित बदलाव की संभावना को बढ़ा रही है और संगठन में नई उम्मीदें जगा रही है।
कुल मिलाकर, उत्तराखंड कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा अब सिर्फ अटकलें नहीं रह गई हैं। हाईकमान की सक्रियता, जिलेवार संगठन सुधार और नए चेहरे को लेकर संभावित फैसले ने राजनीतिक पारा बढ़ा दिया है। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी किस रणनीति के साथ मैदान में उतरेगी और क्या नया प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस की सियासी स्थिति बदल पाएगा।