
पूर्व राज्यसभा सांसद और सिख मामलों के जानकार तिरलोचन सिंह ने 2002 के गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (उस समय के मुख्यमंत्री) की भूमिका की जमकर सराहना की है। उन्होंने कहा कि अगर मोदी ने उस समय उचित कदम नहीं उठाए होते, तो पूरा गुजरात ही आग की चपेट में आ जाता।
एएनआई पॉडकास्ट में खुलासा
न्यूज एजेंसी एएनआई के पॉडकास्ट में बातचीत के दौरान तिरलोचन सिंह ने बताया कि 2002 का दंगा साबरमती एक्सप्रेस अग्निकांड से उपजे जनता के गुस्से का परिणाम था। उन्होंने कहा, “यह दंगा जनता के गुस्से से उत्पन्न हुआ था और अगर नरेंद्र मोदी ने इसे अच्छे से नहीं संभाला होता तो पूरा गुजरात जल जाता।”
जिंदा जले लोगों के शवों का अंतिम संस्कार
सिख नेता ने बताया कि ट्रेन में जिंदा जले लोगों के शव उनके परिजन गांव ले जाकर अंतिम संस्कार करना चाहते थे। लेकिन नरेंद्र मोदी ने साहस दिखाते हुए इन शवों का अंतिम संस्कार वहीं करवा दिया। तिरलोचन सिंह ने कहा, “अगर ये शव गांवों तक पहुंच जाते तो सोचिए क्या होता? कितना गुस्सा भड़कता? पूरा गुजरात ही जल जाता। लेकिन नरेंद्र मोदी ने समय रहते निर्णय लिया और स्थिति को नियंत्रण में रखा।”
सरकार की भूमिका पर सिख नेता की राय
तिरलोचन सिंह ने स्पष्ट किया कि 2002 के दंगों में सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने कहा, “यह दंगा जनता के गुस्से से उपजा था और मोदी ने जो काम किया, उसे किसी ने हाइलाइट नहीं किया। गुजरात दंगा 1984 के दिल्ली दंगों की तरह व्यवस्थित या प्रयाजित नहीं था।”
गुजरात दंगों का राजनीतिक और सामाजिक महत्व
गौरतलब है कि गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे और तिरलोचन सिंह उस समय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष थे। 2002 के दंगों ने पूरे देश के सामजिक और राजनीतिक माहौल को प्रभावित किया था। तिरलोचन सिंह का यह बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि उन्होंने मोदी की तत्कालीन निर्णायक और साहसी भूमिका को उजागर किया है।
सिख नेता की इस टिप्पणी ने यह साफ कर दिया कि 2002 के दंगों में स्थिति को नियंत्रित करने में तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी की भूमिका अहम रही। उनका निर्णय और नेतृत्व न केवल हिंसा को फैलने से रोकने में मददगार साबित हुआ, बल्कि उस समय गुजरात में बड़े सामाजिक संकट को टालने में भी कारगर रहा।