
सिडनी/नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया लंबे समय से भारतीय छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का एक प्रमुख गंतव्य रहा है। 2024 के आंकड़ों के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया के 43 विश्वविद्यालयों में 1.18 लाख से अधिक भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं, जो कुल विदेशी छात्रों का लगभग 15% हिस्सा हैं। इस मामले में केवल चीनी छात्र ही भारतीय छात्रों से आगे हैं, जिनकी संख्या कुल विदेशी छात्रों का 20% से अधिक है। इसके बाद नेपाल, ब्राजील और मलेशिया जैसे देशों का स्थान आता है।
हालांकि हाल ही में वीजा शुल्क और रिजर्व फंड की सीमा में बढ़ोतरी ने भारतीय सहित सभी विदेशी छात्रों पर आर्थिक दबाव बढ़ा दिया है। रिजर्व फंड वह न्यूनतम राशि है, जिसे छात्रों को अपने बैंक खाते में दिखाना होता है ताकि यह साबित हो सके कि उनके पास ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई के लिए पर्याप्त धन मौजूद है।
वीजा शुल्क और रिजर्व फंड में बढ़ोतरी
इस साल अप्रैल में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने विदेशी छात्रों के लिए वीजा शुल्क को 1,600 से बढ़ाकर 2,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर कर दिया। इसके अलावा, रिजर्व फंड की सीमा को 24,000 से बढ़ाकर 27,500 डॉलर कर दिया गया। इस बढ़ोतरी ने ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई को और महंगा बना दिया है।
सिडनी की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में पढ़ रही भारतीय छात्रा अनुष्का गोस्वामी ने बताया कि वीजा शुल्क में वृद्धि ने उनकी आर्थिक स्थिति पर असर डाला है। उन्होंने कहा, “जब मैं 2020 में यहां आई थी, तब वीजा शुल्क 600 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर था। अब यह 2,000 डॉलर से अधिक हो गया है। इसके अलावा कॉलेज की फीस भी है। यह सब मिलकर हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करना सही फैसला है?”
अनुष्का का कहना है कि इसके बावजूद ऑस्ट्रेलिया में शिक्षा की गुणवत्ता और अवसर इतने अच्छे हैं कि यह बढ़ी हुई लागत को उचित ठहराती है। उनके मुताबिक, यहां की शिक्षा रोजगार की संभावनाओं को मजबूत करती है और यही कारण है कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखेंगी।
विश्वविद्यालय और छात्रों की प्रतिक्रिया
ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय सरकार पर शुल्क वृद्धि को वापस लेने का दबाव बना रहे हैं। विदेशी छात्र विश्वविद्यालयों की आय का बड़ा स्रोत हैं और उनकी संख्या में कमी से आर्थिक नुकसान हो सकता है। न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी की छात्रा और छात्र संघ की पदाधिकारी कृषा ने बताया कि विश्वविद्यालय ने छात्रों को आश्वासन दिया है कि वे सरकार से इस मुद्दे पर बातचीत कर रहे हैं।
UNSW इंडियन सोसाइटी के अध्यक्ष बाला गुरुकुगम का कहना है कि अमेरिका में भारतीय छात्रों के लिए बढ़ती सख्ती के कारण ऑस्ट्रेलिया अब भी एक बेहतर विकल्प बन सकता है। हालांकि, बढ़ा हुआ शुल्क उन छात्रों के लिए चिंता का विषय है जो ऑस्ट्रेलिया आने की योजना बना रहे हैं।
हाउसिंग संकट और सीमाएं
कोविड महामारी के बाद ऑस्ट्रेलिया में विदेशी छात्रों की संख्या में तेजी आई थी। 2022 में यह संख्या 5 लाख को पार कर गई, जबकि 2023 में यह लगभग 3.75 लाख रह गई। बढ़ती छात्र संख्या विश्वविद्यालयों के लिए फायदेमंद है, लेकिन इससे स्थानीय हाउसिंग सेक्टर पर दबाव बढ़ गया है। सभी छात्रों को कैंपस में हॉस्टल नहीं मिल पाता, जिससे वे बाहर किराए पर रहते हैं।
ऑस्ट्रेलियाई सरकार अब विदेशी छात्रों की संख्या को प्रति वर्ष 2.7 लाख तक सीमित करना चाहती है। डेस्टिनेशन न्यू साउथ वेल्स की नीति निर्माता बॉडी के जनरल मैनेजर स्टीफन माहोने ने कहा, “हम अधिक विदेशी छात्र चाहते हैं, लेकिन हाउसिंग संकट के कारण सरकार को यह कदम उठाना पड़ा।”
यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट शेन ग्रिफिन ने बताया कि भारतीय छात्रों के लिए विशेष छात्रवृत्ति की व्यवस्था की गई है। वहीं, वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी की प्रोवोस्ट प्रो. डेबोराह स्वीनी का मानना है कि शुल्क वृद्धि ऑस्ट्रेलियाई शिक्षा क्षेत्र को नुकसान पहुंचा सकती है और विश्वविद्यालय सरकार से पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति और भारतीय छात्रों के लिए कदम
ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वांग ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय छात्र उनकी अर्थव्यवस्था और भारत जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए यह कदम उठाया गया है, लेकिन शुल्क वृद्धि वापस लेने का कोई संकेत नहीं दिया।
दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय भारत में अपने कैंपस खोलने की योजना बना रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के ग्लोबल इंगेजमेंट के एसोसिएट डायरेक्टर के अनुसार, चेन्नई और बेंगलुरु में अगले साल से यह शुरू हो सकता है। इससे उन छात्रों को फायदा होगा जो ऑस्ट्रेलिया नहीं आ सकते।
निष्कर्ष
ऑस्ट्रेलिया अब भी भारतीय छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का एक आकर्षक गंतव्य बना हुआ है। हालांकि वीजा शुल्क, रिजर्व फंड और हाउसिंग संकट ने आर्थिक दबाव बढ़ाया है, फिर भी अमेरिकी वीज़ा नियमों में बढ़ती सख्ती के बीच ऑस्ट्रेलिया भारतीय छात्रों के लिए एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर रहा है। विश्वविद्यालयों और सरकार के सहयोग से छात्र इस चुनौती का सामना कर सकते हैं और शिक्षा की गुणवत्ता का लाभ उठा सकते हैं।