उत्तराखंड: बारिश और कम बर्फबारी ने बढ़ाया ग्लेशियरों का संकट, भूस्खलन का खतरा बढ़ा

उत्तराखंड में ग्लेशियरों की स्थिति तेजी से खराब होती जा रही है। हालिया अध्ययनों और वैज्ञानिक अवलोकनों के अनुसार कम बर्फबारी और अधिक मानसूनी बारिश ग्लेशियरों को तेजी से पिघलने और सिकुड़ने के लिए मजबूर कर रही है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक राकेश भांबरी ने बताया कि तीन-चार दशकों पहले 5000 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी नियमित थी, लेकिन अब बारिश अधिक होने के कारण ग्लेशियरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। तापमान में वृद्धि और बढ़ी हुई बारिश ग्लेशियरों के पिघलने की दर को तेज कर रही है।

भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियरों के पिघलने से आसपास के ढलान वाले क्षेत्रों में भूस्खलन और हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। इससे न केवल निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ता है, बल्कि जल विद्युत परियोजनाओं के जलाशयों की क्षमता पर भी असर पड़ता है। ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों में पानी और गाद (सिल्ट) की मात्रा बढ़ती है, जिससे जलाशयों की भंडारण क्षमता घटती है और बिजली उत्पादन प्रभावित होता है।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के मनीष मेहता के अनुसार ग्लेशियर 5 से 20 मीटर प्रतिवर्ष की दर से पीछे खिसक रहे हैं। जांस्कर क्षेत्र के दो ग्लेशियर 20 मीटर प्रति वर्ष की दर से पीछे खिसक रहे हैं, जबकि चोराबाड़ी ग्लेशियर 6 से 8 मीटर प्रति वर्ष पीछे खिसक रहा है। संस्थान उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 11 ग्लेशियरों का अध्ययन कर रहा है। अधिकांश ग्लेशियरों का मॉस बैलेंस कम हो रहा है, जिससे हिम झीलों का निर्माण और उससे होने वाले नुकसान का खतरा बढ़ रहा है।

उच्च हिमालय क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों का भी ग्लेशियरों पर असर पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग और अधिक बारिश के कारण ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है। अलकनंदा, नंदाकिनी, धौली गंगा और ऋषि गंगा जैसी नदियाँ ग्लेशियरों से निकलती हैं और इनके जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। प्रोफेसर डी.एस. बागड़ी के अनुसार अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बारिश और कमजोर मिट्टी के कारण ढलान से बड़े-बड़े बोल्डर नीचे गिरते हैं, जो आपदा का कारण बनते हैं।

बागेश्वर जिले में पिंडारी, सुंदरहूंगा और कफनी ग्लेशियर स्थित हैं। पिंडारी ग्लेशियर में पिछले 60 वर्षों में लगभग 700 मीटर सिकुड़ाव दर्ज किया गया है। पहले यहाँ जीरो प्वाइंट होता था, अब बर्फ देखने के लिए उससे आगे जाना पड़ता है। इस वर्ष अगस्त महीने में औसत से 300 मिमी अधिक बारिश दर्ज हुई, जो ग्लेशियरों के पिघलने को और तेज कर रही है। सेवानिवृत हिम वैज्ञानिक डॉ. डी.पी. डोभाल का कहना है कि अधिक बारिश ग्लेशियरों के लिए बेहद नुकसानदायक है और इससे निचले क्षेत्रों में बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ सकता है।

भू-वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि ग्लेशियरों की सुरक्षा के लिए तापमान नियंत्रण, कम उत्सर्जन और व्यापक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है। यदि इन उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य में उत्तराखंड के निचले क्षेत्रों में बाढ़ और भू-वैज्ञानिक जोखिम और बढ़ सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home1/theindi2/public_html/wp-includes/functions.php on line 5471