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मसूरी रोपवे और किमाड़ी बायपास प्रोजेक्ट्स पर उठे सवाल: विकास या आपदा की दस्तक? 🚧🌍
देहरादून: मसूरी रोपवे (पुरकुल से मसूरी) और किमाड़ी बायपास प्रोजेक्ट्स, जिन्हें पर्यटन और यातायात सुधार के बड़े कदम के रूप में पेश किया जा रहा है, अब पर्यावरणीय संकट की नई बहस छेड़ रहे हैं। स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों का आरोप है कि इन परियोजनाओं के चलते न केवल जंगलों का सफाया हुआ है, बल्कि भूजल स्रोतों और नदी क्षेत्रों पर भी गंभीर असर पड़ा है।
📌 मुख्य तथ्य और खुलासे
- जंगल कटाई और मिट्टी का क्षरण: पुरकुल रोपवे प्रोजेक्ट के लिए सैकड़ों पेड़ काटे गए, जिससे पहाड़ की मिट्टी असुरक्षित हो गई है और भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है।
- नदी क्षेत्रों पर दबाव: किमाड़ी बायपास प्रोजेक्ट के तहत नदियों और नालों पर अंधाधुंध निर्माण हुआ है। मानसून में इनका पानी अब सीधे गांवों और खेतों में भर रहा है।
- ग्रामीणों की शिकायतें: किमाड़ी और आसपास के गांवों के ग्रामीणों ने शिकायत की है कि सड़क चौड़ीकरण से उनकी जमीनें प्रभावित हुईं, मलबा सीधे खेतों और नालों में फेंका गया।
- अनुमोदन प्रक्रिया पर सवाल: पर्यावरण मंजूरी को लेकर स्थानीय लोग पारदर्शिता की कमी का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि ग्राम सभाओं और प्रभावित परिवारों को विश्वास में नहीं लिया गया।
- आर्थिक लेन-देन की जांच की मांग: स्थानीय सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया है कि भूमि अधिग्रहण और ठेकेदारी में गड़बड़ी हुई है, और कुछ प्रोजेक्ट्स में ‘प्रभावशाली लोगों’ को लाभ पहुंचाने के लिए टेंडर बदले गए।
- भविष्य का खतरा: विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि ऐसे ही अंधाधुंध निर्माण जारी रहे, तो मसूरी और देहरादून घाटी में बाढ़ और बड़े भूस्खलन जैसी आपदाओं का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा।
📣 स्थानीय आवाज़ें
- पर्यावरण कार्यकर्ता: “पर्यटन के नाम पर हमारी नदियों और जंगलों की बलि दी जा रही है। सरकार सिर्फ होटल और रिसोर्ट लॉबी के दबाव में है।”
- ग्रामीण निवासी: “सड़क चौड़ी तो हो गई, लेकिन हमारे खेत बर्बाद हो गए। किसी ने मुआवज़ा तक नहीं दिया।”
👉 यह मामला अब प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में भी तूल पकड़ रहा है। यदि उच्च-स्तरीय जांच हुई तो इन परियोजनाओं की वास्तविकता और भी चौंकाने वाले तथ्य उजागर कर सकती है।
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