
दिल्ली की साकेत अदालत ने अल फलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक जावेद अहमद सिद्दीकी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। हाल ही में दिल्ली धमाका मामले की जांच के दौरान उन्हें संदिग्ध गतिविधियों और कुछ संबंधित आरोपों को लेकर गिरफ्तार किया गया था। न्यायालय के आदेश के बाद अब वे आगे की पूछताछ तक जेल में रहेंगे।
61 वर्षीय सिद्दीकी का विवादों से पुराना रिश्ता रहा है। वे पहले चिट फंड कारोबार में सक्रिय थे और उन पर 14–15 आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए थे। आरोप है कि इस दौरान उन्होंने लोगों के करोड़ों रुपये लौटाए बिना अपने पास रख लिए थे, जिन्हें बाद में अल फलाह यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों की स्थापना में लगाया गया। बाद में कथित तौर पर उन्होंने अधिकांश रकम वापस की और कोर्ट से राहत मिल गई।
साल 2000 की एफआईआर (43/2000) में उन पर और उनके भाई सऊद अहमद पर धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश से जुड़े गंभीर आरोप लगाए गए थे। IPC की धाराओं 420, 406, 409, 468, 471 और 120B के तहत मामला दर्ज हुआ था। जांच में उन पर 7.5 करोड़ रुपये की वित्तीय हेराफेरी का आरोप भी शामिल था।
सिद्दीकी ने इंदौर से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया और बाद में 1992 से 1994 तक जामिया मिलिया इस्लामिया में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे। उनके दोनों बेटे और बहनें दुबई में रहती हैं, जहाँ उनका व्यावसायिक संपर्क भी बताया जाता है।
वर्तमान में वह अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, जो फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर सहित कई शैक्षणिक संस्थान संचालित करता है। यूनिवर्सिटी का संबंध नौ कंपनियों से है, जिनमें निवेश, शिक्षा, ऊर्जा, कंसल्टेंसी, सॉफ्टवेयर और एक्सपोर्ट सेक्टर शामिल हैं। इन सभी में सिद्दीकी डायरेक्टर के रूप में दर्ज हैं। रिकॉर्ड के अनुसार, 1992 में अल-फलाह इन्वेस्टमेंट कंपनी से जुड़ना उनकी व्यावसायिक यात्रा की शुरुआत थी।
इनमें से अधिकांश कंपनियों का पंजीकृत पता 274-A, अल-फलाह हाउस, जामिया नगर, ओखला, नई दिल्ली है—यही वह स्थान है जहाँ अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट का मुख्य संचालन भी होता है।
अल फलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना 1997 में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में की गई थी। ट्रस्ट से जुड़े नामों में उस्मा अख्तर और आलिया सिद्दीकी भी शामिल हैं, जिनके कारोबार और विदेशी संबंधों की जांच अब तेज हो गई है।
दिल्ली ब्लास्ट प्रकरण के बाद अब जावेद सिद्दीकी, उनकी यूनिवर्सिटी और उनसे संबंधित कंपनियाँ जांच एजेंसियों की विशेष निगरानी में हैं।