
उत्तराखंड में पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बदले जाने की मार पलायन रोकथाम योजना पर भी पड़ी। नेतृत्व परिवर्तन के बाद सरकारों की प्राथमिकताओं में आए बदलाव का नतीजा रहा कि पलायन रोकने के लिए शुरू की गई योजनाओं पर काम सुस्त पड़ गया। पिछले वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के 48 प्रतिशत काम पूरे नहीं हो पाए। जबकि उससे पहले वर्ष में इसी योजना के सिर्फ 12 प्रतिशत काम ही अधूरे रह गए थे।
प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही पलायन की समस्या का समाधान राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में रहा। 2017 में सत्ता पर काबिज होने के बाद तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने न सिर्फ पलायन के कारण और समाधान जानने के लिए आयोग का गठन किया बल्कि मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना भी शुरू हुई।
इस योजना के तहत आयोग की सिफारिशों के अनुरूप पलायन प्रभावित गांवों में बुनियादी सुविधाएं जुटाने के साथ आजीविका के अवसर बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना आरंभ की गई। इस योजना के तहत अलग से बजट का प्रावधान किया गया। मगर पिछले दिनों योजना की समीक्षा के दौरान प्रगति के जो आंकड़े सामने आए, वह चिंता में डालने वाले हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए सभी 13 जिलों को 17 करोड़ 87 लाख 27 हजार रुपये का बजट उपलब्ध कराया था। इस धनराशि के सापेक्ष सरकार 353 योजनाओं को मंजूरी दी थी लेकिन वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर केवल 185 योजनाएं ही पूरी हो सकीं और 48 प्रतिशत बजट का ही इस्तेमाल हो पाया। 52 फीसदी बजट खर्च होने से रह गया, जबकि पलायन प्रभावित गांवों में विकास योजनाओं के लिए धनराशि की किल्लत है।
इस सुस्त प्रगति की वजह सूत्र कोविड महामारी और सरकार में बार-बार नेतृत्व परिवर्तन को बता रहे हैं। उनका मानना है कि तीन-तीन मुख्यमंत्रियों के बदले जाने और कोविड महामारी के कारण सरकार की प्राथमिकताओं में बदलाव की वजह से कई प्रमुख योजनाओं की प्रगति प्रभावित हुई है। हालांकि, जानकार इसे पलायन की समस्या के प्रति सरकारी तंत्र की उदासीनता मान रहे हैं। उनके मुताबिक, 2020-21 में इस योजना के तहत 17.92 करोड़ रुपये की 361 योजनाओं को मंजूरी दी गई, जिनमें से 317 यानी 88 फीसदी योजनाएं पूरी हुईं और 84 प्रतिशत बजट का उपयोग हुआ लेकिन वित्तीय वर्ष 2021-22 में खर्च 48 प्रतिशत पर अटक गया।
इन तीन जिलों की प्रगति खराब
अल्मोड़ा में 66 में से 26 योजनाएं ही पूरी हो सकीं, जबकि नैनीताल की तीन और उत्तरकाशी की 14 योजनाओं पर काम भी शुरू नहीं हो सका।
इन जिलों में 50 से 10 फीसदी तक काम
चमोली जिले में छह में से सभी योजनाओं पर काम हुआ, जबकि बागेश्वर में 89 प्रतिशत, चंपावत में 77 प्रतिशत देहरादून में 50 प्रतिशत, पौड़ी में 60, पिथौरागढ़ 56, रुद्रप्रयाग में 50 और टिहरी में 52 प्रतिशत योजनाओं पर काम हुआ।