
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने अपने मून मिशन ‘आर्टेमिस-1’ की लॉन्चिंग फिर टाल दी। रॉकेट को 3 सितंबर को रात 11 बजकर 47 मिनट पर उड़ान भरनी थी। इससे पहले 29 अगस्त को रॉकेट के 4 में से तीसरे इंजन में आई तकनीकी गड़बड़ी और खराब मौसम की वजह से इसकी लॉन्चिंग टाली गई थी। रॉकेट में ईंधन पहुंचाने वाले सिस्टम में गड़बड़ी थी इसे ठीक करने की कोशिश की गई, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद इसकी लॉन्चिंग टाल दी गई। लॉन्चिंग की नई तारीख का अभी ऐलान नहीं किया गया है।
क्या है आर्टेमिस-1 मून मिशन?
अमेरिका 53 साल बाद अपने मून मिशन आर्टेमिस के जरिए इंसानों को चांद पर एक बार फिर से भेजने की तैयारी कर रही है। आर्टेमिस-1 इसी दिशा में पहला कदम है। यह प्रमुख मिशन के लिए एक टेस्ट फ्लाइट है, जिसमें किसी अंतरिक्ष यात्री को नहीं भेजा जाएगा। इस फ्लाइट के साथ वैज्ञानिकों का लक्ष्य यह जानना है कि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चांद के आसपास सही हालात हैं या नहीं। साथ ही क्या एस्ट्रोनॉट्स चांद पर जाने के बाद पृथ्वी पर सुरक्षित लौट सकेंगे या नहीं।
नासा का ‘स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) मेगारॉकेट’ और ‘ओरियन क्रू कैप्सूल’ चंद्रमा पर पहुंचेंगे। आमतौर पर क्रू कैप्सूल में एस्ट्रोनॉट्स रहते हैं, लेकिन इस बार यह खाली रहेगा। ये मिशन 42 दिन 3 घंटे और 20 मिनट का है, जिसके बाद यह धरती पर वापस आ जाएगा। स्पेसक्राफ्ट कुल 20 लाख 92 हजार 147 किलोमीटर का सफर तय करेगा।
दशकों से टल रहा नासा का ह्यूमन मून मिशन
- SLS रॉकेट का प्लान 2010 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में जन्मा था। इस वक्त ‘कॉन्स्टलेशन प्रोग्राम’ के जरिए वे अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजना चाहते थे, लेकिन मिशन में कई बार देरी के बाद सरकार ने इसे बंद करने का फैसला लिया था।
- मगर अमेरिकी संसद के कुछ और ही इरादे थे। उसने नासा ऑथराइजेशन एक्ट 2010 पास किया। इसके तहत नासा को SLS रॉकेट और ओरियन क्रू कैप्सूल की प्लानिंग को कंटिन्यू रखने के लिए कहा गया। यानी, अब एजेंसी कॉन्स्टलेशन प्रोग्राम और अन्य स्पेसक्राफ्ट सिस्टम ‘स्पेस शटल’ के पार्ट्स भी SLS में इस्तेमाल कर सकती थी।
- नासा की नई प्लानिंग के तहत रॉकेट की लॉन्चिंग 2016 में होनी थी। इसके बाद डोनाल्ड ट्रम्प सरकार ने 2017 में आर्टेमिस मिशन को ऑफिशियल नाम दिया। इसमें देरी होने के बाद 2019 में उस वक्त के नासा एडमिनिस्ट्रेटर जिम ब्राइडनस्टीन को पता चला कि रॉकेट को तैयार करने में अभी एक साल का समय और लगेगा।