
राज्य के दाे प्राइवेट व दाे सरकारी थर्मल प्लांट में सिर्फ 1 से 5 दिन का कोयला बचा है। इसके अलावा सरकारी थर्मल प्लांटों में क्षमता के मुताबिक बिजली पैदा नहीं हो रही है। काेयले की सप्लाई न मिली ताे हमारे थर्मल प्लांट कभी भी ठंडे पड़ सकते हैं। उधर, कोयला संकट के बीच केंद्र सरकार ने पावरकॉम को झटका दिया है। केंद्र ने पत्र जारी करके थर्मल प्लांट्स में 6 फीसदी विदेशी कोयला इस्तेमाल करने का फरमान जारी किया है। इस फैसले से पावरकॉम पर 250-300 करोड़ रुपए तक का आर्थिक बोझ पड़ेगा।
यहां राेपड़-जीवीके पावर थर्मल का 1-1 यूनिट तकनीकी खराबी के कारण बंद है। वीरवार को सभी थर्मल प्लांट्स समेत अन्य स्रोतों से 4858 मेगावाट बिजली उत्पादन हाे पाया। जबकि बिजली की अधिकतम मांग 8 हजार 105 मेगावाट रिकाॅर्ड हुई। ये बाकी का बिजली गैप ओपन एक्सचेंज से लेकर काम चलाया। ऊर्जा मंत्रालय को आशंका है कि देश में फिर कोयले की कमी हो सकती है। बिजली की बढ़ती मांग और खपत के चलते कोयला आधारित बिजली की मांग बढ़ी है।
ऐसे में ऊर्जा मंत्रालय को थर्मल पावर प्लांट्स पर 24 मिलियन टन कोयले की कमी की आशंका है। सरकारी थर्मल प्लांटों में शामिल रोपड़ प्लांट में कोयला तो 1.2 दिन का बचा है लेकिन उत्पादन पूरा नहीं हो रहा। यह प्लांट 840 मेगावाट का है लेकिन उत्पादन 300 मेगावाट हो रहा है। वहीं लेहरा मुहब्बत की क्षमता 920 मेगावाट है। यहां भी 3.1 दिन का कोयला बचा है।