
बीते साल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ के कई दौरे किए थे। योगी के अलीगढ़ प्रेम पर सियासी पंडितों ने अचरज भी जताया था। लेकिन इस बार निगम चुनाव के लिए उम्मीदवारों के एलान ने साबित कर दिया कि मुख्यमंत्री के दौरे एक खास रणनीति का हिस्सा थे। दरअसल वह मुस्लिम वोट बैंक के मद्देनजर अलीगढ़ को एक सियासी प्रयोगशाला बनाना चाहते थे। इस बार भारतीय जनता पार्टी ने अभूतपूर्व तरीके से अलीगढ़ के 90 में से 18 वार्डों से मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर इस पर मुहर भी लगा दी है।
उत्तर प्रदेश में आपवादिक स्थानों को छोड़कर यह आम धारणा है कि मुस्लिम वोटरों का भाजपा के प्रति रुझान कम ही रहता है। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस धारणा को तोड़ने की कवायद शुरू कर चुके हैं। पिछले साल मुख्यमंत्री योगी के अलीगढ़ दौरे की गुप्त बैठक की खबर अमर उजाला में आने पर लोग हैरत में पड़ गए थे। इसमें योगी ने संघ और भाजपा संगठन के कुछ चुनिंदा लोगों से अनौपचारिक बातचीत में अलीगढ़ में गोरखपुर मॉडल की सियासत का मंत्र दिया था। गोरखपुर मॉडल का अर्थ यह था कि गोरखपुर में जिस तरह योगी को बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा जीतकर उनको भाजपा के पाले में लाने में कामयाबी मिली है, उसी तर्ज पर अलीगढ़ में भाजपा को काम करना चाहिए। जाहिर है कि मुख्यमंत्री की सलाह की कोई अनदेखी नहीं कर सकता था।
उसी पर अमल करते हुए भाजपा ने इस बार पूरे प्रदेश में अलीगढ़ से सर्वाधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इससे पूर्व 2017 में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने अलीगढ़ के कुल 70 वाडों से सिर्फ दो मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारे थे। पूर्व के चुनावों का हाल भी कमोबेश ऐसा ही था। 2017 में तो मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में तो भाजपा उम्मीदवार ही नहीं उतार पाई थी। लेकिन इस बार योगी मंत्र को अपनाकर बदले सियासी माहौल में भाजपा ने 18 मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर सबको चौंका दिया है। मुख्यमंत्री के जिले गोरखपुर समेत प्रदेश के अन्य जिलों में भी भाजपा ने इस बार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। दरअसल इस बार के स्थानीय निकाय चुनावों को प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास माना जा रहा है।
सबका साथ सबका विकास को सैद्धांतिक तौर पर स्वीकारने वाली भाजपा के रणनीतिकारों को मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी अखाड़े में अवसर न देने के लिए अक्सर कटघरे में खड़ा किया जाता है। भाजपा इस सवाल के जवाब के साथ 2024 में जाना चाहती है। भाजपा का मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाने के इस प्रयोग से क्या सियासी नवनीत निकलता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इसे पार्टी का साहसिक और अपनी पारंपरिक छवि बदलने की कवायद वाला साहसिक कदम माना जाएगा।