Yamunotri Dham पहुंचने का रास्ता बेहद जटिल, वैकल्पिक मार्ग का राग भी अलापा; लगा रहता है जाम

Yamunotri Dham चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों को सबसे अधिक परेशानी यमुनोत्री पैदल मार्ग पर झेलनी पड़ रही है। यमुनोत्री पैदल मार्ग पर जब भी जाम की स्थिति बनती है जिम्मेदार वैकल्पिक पैदल मार्ग का राग अलापने लगते हैं। लेकिन फिर बात आई-गई हो जाती है। पहाड़ी से पत्थर गिरने का खतरा लगातार बना रहता है। मार्ग के रखरखाव की जिम्मेदारी लोनिवि बड़कोट के पास है।Yamunotri Dham: चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों को सबसे अधिक परेशानी यमुनोत्री पैदल मार्ग पर झेलनी पड़ रही है। वैसे तीर्थ यात्रियों की पहली परीक्षा पालीगाड से लेकर जानकीचट्टी तक संकरा हाईवे लेता है, लेकिन जानकीचट्टी और खरसाली से यमुनोत्री धाम को जोड़ने वाला पैदल मार्ग तो अव्यवस्थाओं की पगडंडी ही बन चुका है। असल में जिम्मेदारों ने इस धाम को हमेशा उपेक्षित रखा। यहां तक कि वर्षों से चली आ रही वैकल्पिक मार्ग की मांग भी हमेशा नजरअंदाज की गईं।यमुनोत्री पैदल मार्ग पर जब भी जाम की स्थिति बनती है, जिम्मेदार वैकल्पिक पैदल मार्ग का राग अलापने लगते हैं। लेकिन, फिर बात आई-गई हो जाती है। इस बार भी वैकल्पिक मार्ग का राग अलापा गया है। अगर खरसाली से गरुड़ गंगा होते हुए यमुनोत्री धाम तक वैकल्पिक मार्ग बनता तो न केवल धाम की यात्रा सुलभ होती, बल्कि तीर्थ यात्रियों को जाम से नहीं जूझना पड़ता।

मार्ग चौड़ा हुआ न सुरक्षा बढ़ी

पिछले 12 दिन के अंतराल में 1.51 लाख तीर्थयात्री यमुनोत्री धाम पहुंचे हैं। जानकीचट्टी और खरसाली से यमुनोत्री धाम पहुंचने का एक ही पैदल मार्ग है। करीब छह किमी लंबा यह मार्ग बेहद संकरा है और इस पर जाम भी लगा रहता है। बीते दिनों में मार्ग पर यही स्थिति बनी रही और यात्रा धक्कों के बीच चली। संकरा होने के साथ यह मार्ग कई स्थानों पर भूस्खलन प्रभावित भी है।

पहाड़ी से पत्थर गिरने का खतरा लगातार बना रहता है। मार्ग के रखरखाव की जिम्मेदारी लोनिवि बड़कोट के पास है। इसकी मरम्मत पर हर वर्ष लाखों रुपये की धनराशि खर्च होती है। लेकिन, जिन स्थानों से पत्थर गिरते हैं, उस क्षेत्र का आज तक ट्रीटमेंट नहीं हुआ। मार्ग चौड़ीकरण के संबंध में तो कोई योजना ही नहीं है।

हेलीपैड का निर्माण

यमुनोत्री धाम में आपातकाल के लिए हेली सेवा की सुविधा भी नहीं है। यमुनोत्री के तीर्थ पुरोहितों ने गरुड़ गंगा के निकट एक स्थान हेलीपैड के लिए प्रशासन को सुझाया था, लेकिन प्रशासन के स्तर से इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए। अगर हेलीपैड की सुविधा होती तो यमुनोत्री धाम में जरूरी सामान पहुंचाने, आपात स्थिति में काम आने और तीर्थ यात्रियों के लिए भी सुविधा होती।

जरूरी है ट्रांजिट हास्टल

यमुनोत्री धाम में सेवा देने वाले चिकित्सक व सुरक्षा कर्मियों के लिए एक ट्रांजिट हास्टल तक की व्यवस्था नहीं है। इसलिए कोई अधिकारी-कर्मचारी वहां सेवा नहीं देना चाहता। पैदल मार्ग पर जो स्वास्थ्य टीम तैनात रहती हैं, उनके बैठने और ठहरने की व्यवस्था नहीं है। यमुनोत्री में घोड़ा-खच्चर व डंडी-कंडी पार्किंग की भी सुविधा नहीं है।

खरसाली-यमुनोत्री को नगर पंचायत की दरकार

यमुनोत्री धाम, पैदल मार्ग और पड़ाव पर स्वच्छता की स्थिति भी बदहाल रही। अधिकांश कूड़ा यमुना नदी में प्रवाहित हुआ। इसलिए यमुनोत्री धाम, खरसाली और जानकी चट्टी में अव्यवस्थाओं को दूर करने के लिए नगर पंचायत गठित करने की भी मांग उठती रही है। ताकि जानकी चट्टी ओर यमुनोत्री धाम में लाइटिंग से लेकर स्वच्छता की स्थिति सही रहे, स्थायी शौचालयों का निर्माण और उनके संचालन की सही व्यवस्था हो सके। अभी तक इन व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी जिला पंचायत के पास है।

रोपवे अभी सिर्फ सपना

यमुनोत्री धाम को रोपवे से जोड़ने की कवायद वर्ष 2010 से सिर्फ कागजों में ही चल रही है। 3.8 हेक्टेयर वन भूमि की स्वीकृति मिलने और खरसाली में चार हेक्टेयर भूमि ग्रामीणों द्वारा उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड को दिए जाने के बाद भी निर्माण शुरू नहीं हुआ। यमुनोत्री धाम में यह पर्यटन विकास की धरातलीय स्थिति है।

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