
भारत के इतिहास में 1984 का सिख दंगा एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इस दंगे में सैकड़ों सिखों की निर्मम हत्या कर दी गई थी और उनकी संपत्तियों को नष्ट कर दिया गया था। इस घिनौने कृत्य के दोषियों को सजा दिलाने के लिए कई वर्षों तक संघर्ष चला। अब, लगभग 40 साल बाद, पीड़ितों को न्याय मिला है। दिल्ली की एक अदालत ने पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को 1984 सिख दंगे में दोषी करार दिया है, जो पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए ऐतिहासिक क्षण है।
सज्जन कुमार को अदालत ने सिखों के खिलाफ हिंसा और हत्या की साजिश रचने का दोषी पाया। अदालत ने कहा कि कुमार ने दंगे को बढ़ावा देने के लिए अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल किया था और सिख समुदाय के लोगों पर हमला करने के लिए उकसाया था। यह फैसला कई वर्षों से लंबित था, और पीड़ितों ने न्याय की उम्मीद छोड़ी नहीं थी।
इस फैसले के साथ ही यह सुनिश्चित हुआ कि कोई भी अपराधी चाहे वह किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हो, कानून से बच नहीं सकता। सज्जन कुमार की सजा से यह संदेश गया है कि भारतीय न्यायपालिका किसी भी अपराधी को सजा दिलाने में कोई समझौता नहीं करेगी, चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों न हो। इस फैसले को भारत में न्यायिक प्रणाली की सशक्तता के रूप में देखा जा रहा है।
पीड़ितों और उनके परिवारों ने इस फैसले को राहत और संतोष के रूप में स्वीकार किया है, जबकि कई लोग इसे सच्चे न्याय की ओर एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं। 1984 सिख दंगे के बाद से यह पहला मौका है जब किसी बड़े नेता को दोषी करार दिया गया है। हालांकि, इस फैसले से पीड़ितों को पूरी तरह से न्याय नहीं मिल सकता, लेकिन यह उनकी लंबी और कष्टदायक न्यायिक यात्रा को एक सफलता का प्रतीक बना गया है।
दंगा प्रभावित क्षेत्रों में अब भी कई लोग ऐसे हैं जिनके परिवार इस कृत्य का शिकार बने थे। उनके लिए यह फैसला किसी उद्धार से कम नहीं है। इसके बावजूद, कई लोग यह महसूस करते हैं कि बहुत देर से ही सही, लेकिन अब न्याय हुआ है।
सज्जन कुमार की सजा के बाद, यह उम्मीद जताई जा रही है कि अन्य दोषियों को भी जल्द ही सजा मिलेगी और इस घिनौने अपराध का इतिहास हर किसी के लिए एक चेतावनी बनेगा। 1984 सिख दंगे के पीड़ितों के लिए यह न्याय का बड़ा क्षण है, जो न केवल उनके लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा साबित होगा।