“सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: ‘साबरमती आश्रम मामले में भावनात्मक अपील न करें’, महात्मा गांधी के परपोते को दी सलाह”

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में साबरमती आश्रम से जुड़ी एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करते हुए महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी को सलाह दी कि वे इस मामले में भावनाओं का प्रवाह न करें। कोर्ट ने कहा कि इस याचिका को संवेदनशील तरीके से देखा जाना चाहिए और इसे न्यायिक दृष्टिकोण से ही देखा जाए, न कि किसी भावनात्मक दृष्टिकोण से।यह मामला साबरमती आश्रम से जुड़ा हुआ है, जो महात्मा गांधी के जीवन और संघर्ष का प्रतीक है। तुषार गांधी ने इस आश्रम से जुड़े कुछ मुद्दों को लेकर याचिका दायर की थी, जिसमें कुछ विवादित मुद्दों का समाधान मांगा गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करते हुए कहा कि इस मामले में भावनाओं को शामिल करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की पीठ ने कहा, “हम जानते हैं कि साबरमती आश्रम महात्मा गांधी के लिए एक ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्व रखता है, लेकिन यह मामला कानूनी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।” कोर्ट ने तुषार गांधी से यह भी कहा कि उन्हें इस मामले में केवल कानूनी और तथ्यात्मक बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि भावनात्मक अपीलों पर। कोर्ट ने इस दौरान यह भी कहा कि यदि इस मामले में भावनाएं समाहित की गईं, तो इससे न केवल न्यायिक प्रक्रिया पर असर पड़ेगा, बल्कि यह पूरी तरह से कानून के अनुरूप निर्णय लेने में भी बाधा डाल सकता है।महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने साबरमती आश्रम को लेकर कई सवाल उठाए थे, जिसमें आश्रम के कुछ हिस्सों की स्थिति और वहां की घटनाओं को लेकर शिकायतें शामिल थीं। उन्होंने यह भी आरोप लगाए थे कि आश्रम के कुछ हिस्सों में गलत तरीके से बदलाव किए जा रहे हैं, जो गांधी जी के विचारों और उनकी विरासत से मेल नहीं खाते।सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तुषार गांधी से आग्रह किया कि वे किसी भी भावनात्मक या व्यक्तिगत नजरिए से बचें और इस मामले को पूरी तरह से कानूनी तरीके से और बिना किसी पूर्वाग्रह के पेश करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद ही निर्णय लिया जाएगा, ताकि सभी बिंदुओं को ठीक से समझा जा सके।इस मामले में अब अगली सुनवाई के लिए तारीख तय की गई है, और अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि मामले का निपटारा केवल कानूनी और तथ्यों पर आधारित होगा। कोर्ट की यह टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह साबरमती आश्रम जैसे ऐतिहासिक स्थान से जुड़े संवेदनशील मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

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