
उत्तराखंड में इस साल मार्च महीने के दौरान मौसम के हालात कुछ अलग रहे। राज्य में इस बार 5% कम बारिश हुई, जिससे पर्वतीय इलाकों में बर्फबारी भी अपेक्षाकृत कम रही। इस कमी का असर खासतौर पर मद्महेश्वर क्षेत्र पर पड़ा, जहां बर्फ की परत पूरी तरह से गायब हो गई है। मद्महेश्वर, जो अपने खूबसूरत बर्फीले दृश्य और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, अब बर्फविहीन हो चुका है, जिससे पर्यटकों और श्रद्धालुओं को इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता में बदलाव का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, तपिश के बढ़ते प्रभाव से केदारनाथ क्षेत्र में बर्फ का पिघलना भी शुरू हो गया है। केदारनाथ, जो की एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और हर साल सर्दी के मौसम में बर्फ से ढका रहता है, इस बार अधिक गर्मी के कारण बर्फ का तेजी से पिघलना देखा जा रहा है। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तापमान में वृद्धि की वजह से हो रहा है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग के संकेत के रूप में देखा जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, इन क्षेत्रों में बर्फ की परतें तेजी से घट रही हैं, जिससे जल स्रोतों में परिवर्तन और बर्फ के जलग्रहण क्षेत्र में असंतुलन पैदा हो रहा है। इस वर्ष मार्च में कम बारिश और बढ़ी हुई तपिश के कारण जलवायु परिवर्तन का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस बदलाव का असर न केवल पर्यावरण पर पड़ा है, बल्कि पर्यटन और तीर्थयात्रा पर भी असर डाला है, क्योंकि ये स्थानों की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के कारण बड़े पैमाने पर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। मौसम विभाग के अनुसार, अगर ऐसे ही जलवायु में बदलाव होते रहे, तो आने वाले वर्षों में पर्वतीय इलाकों की बर्फबारी और जलस्रोतों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे इन क्षेत्रों की पारिस्थितिकी और स्थानीय जीवन पर दीर्घकालिक असर हो सकता है। यह घटना राज्य में जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।