
समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में भारतीय शेयर बाजार में आई भारी गिरावट को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। उनका कहना है कि देश के 99 फीसदी लोग शेयर बाजार की तबाही से तबाह हो रहे हैं, जबकि सरकार और पूंजीपतियों के पास इस संकट से बचने के लिए पर्याप्त उपाय हैं। अखिलेश यादव ने इस मामले में केंद्र की नीतियों को दोषी ठहराया और आरोप लगाया कि सरकार आम लोगों की समस्याओं को नजरअंदाज कर रही है, जबकि वह केवल बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों की मदद कर रही है।शेयर बाजार में हालिया गिरावट ने न केवल निवेशकों को भारी नुकसान पहुंचाया, बल्कि इससे व्यापक आर्थिक संकट की आशंका भी बढ़ गई है। इस गिरावट ने उन करोड़ों भारतीयों को प्रभावित किया है, जिन्होंने अपनी जमा पूंजी या पेंशन फंड जैसे वित्तीय निवेश शेयर बाजार में किए थे। अखिलेश यादव ने इस संदर्भ में कहा कि “केंद्र सरकार को इन निवेशकों के नुकसान की कोई चिंता नहीं है। देश के 99 फीसदी लोग इस गिरावट से प्रभावित हो रहे हैं, जबकि 1 फीसदी लोग जिनका संबंध सरकार और बड़े व्यापारिक घरानों से है, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।” अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि सरकार की आर्थिक नीतियां और वित्तीय असंतुलन आम आदमी के लिए नुकसानदेह साबित हो रही हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की नीतियों से आम लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है, जबकि आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। सपा प्रमुख ने यह भी कहा कि सरकार ने जो योजनाएं बनाई हैं, वे केवल पूंजीपतियों और बड़े उद्योगपतियों के हित में हैं, न कि आम जनता के लिए। इस दौरान अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि शेयर बाजार की गिरावट ने छोटे निवेशकों को बेहद नुकसान पहुंचाया है और सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर सरकार का ध्यान सही दिशा में होता, तो निवेशकों को इतना बड़ा नुकसान नहीं होता। सरकार को आम आदमी के हितों की रक्षा करनी चाहिए, न कि बड़े व्यापारियों की मदद करनी चाहिए।” उन्होंने केंद्र सरकार से यह भी मांग की कि उन्हें आम आदमी को राहत देने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए और शेयर बाजार में आई गिरावट के कारण हुए नुकसान की भरपाई करनी चाहिए। अखिलेश यादव के बयान से स्पष्ट है कि वह केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ हैं और उनका मानना है कि इन नीतियों के कारण देश में आर्थिक असंतुलन और असमर्थता पैदा हो रही है। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर से राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या केंद्र सरकार आम जनता के हितों को प्राथमिकता दे रही है या सिर्फ बड़े पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के पक्ष में काम कर रही है।