
सुप्रीम कोर्ट में एक दिलचस्प मोड़ देखने को मिला जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) को लेकर एक जज ने तीखा सवाल पूछा। यह मामला बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के करीबी सहयोगी के खिलाफ चल रही जांच से जुड़ा हुआ था। जज ने ED से यह सवाल किया कि वे “छोटी मछलियों” के पीछे क्यों पड़े हैं, जबकि मामले में कई बड़े नाम शामिल हैं।यह सवाल तब उठाया गया जब सुप्रीम कोर्ट में ED ने एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने लालू यादव के करीबी सहयोगी के खिलाफ भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच का बचाव किया। अदालत में हुई बहस के दौरान, जज ने ED से पूछा कि जब मामला इतना बड़ा है और इसमें कई महत्वपूर्ण नाम शामिल हैं, तो क्यों उनकी कार्रवाई केवल छोटे स्तर के व्यक्तियों तक सीमित रही है?जज का यह सवाल बहुत मायने रखता है, क्योंकि लालू यादव के परिवार के कई सदस्य और उनके करीबी सहयोगी पहले ही जांच के दायरे में आ चुके हैं, और जांच एजेंसियों का आरोप है कि इन लोगों ने सरकारी पद का गलत इस्तेमाल किया। इन आरोपों में जमीन सौदों, नौकरी देने के बदले पैसे लेने, और अन्य भ्रष्टाचार के मामलों की जांच की जा रही है। बावजूद इसके, ED की कार्रवाई मुख्य रूप से छोटे सहयोगियों तक सीमित रही है, जिनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है, जबकि प्रमुख आरोपियों के खिलाफ जांच धीमी नजर आई है।सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, जज ने सवाल किया कि क्या जांच केवल छोटे व्यक्तियों तक सीमित रहनी चाहिए, जबकि बड़े आरोपी और राजनीतिक प्रभाव वाले लोग जांच के दायरे से बाहर हैं? जज ने यह भी कहा कि अगर सरकार और जांच एजेंसियां बड़ी मछलियों पर ध्यान नहीं देंगी, तो यह जनता को गलत संदेश भेजेगा और सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा।इस सवाल ने इस पूरे मामले में एक नया मोड़ लिया है और इसके बाद से यह चर्चा का विषय बन गया है कि क्या जांच एजेंसियां सचमुच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम कर रही हैं। विपक्षी नेताओं ने इसे एक अवसर के रूप में देखा है और आरोप लगाया है कि सरकार अपने नेताओं और समर्थकों को बचाने के लिए छोटे लोगों पर कार्रवाई कर रही है, जबकि बड़े आरोपियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।इस मामले में ED ने तर्क दिया कि वे कानून के तहत अपनी कार्रवाई कर रहे हैं और जांच में जिन व्यक्तियों का नाम सामने आया है, उन पर कार्रवाई की जा रही है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गहरी छानबीन का आदेश दिया है और आगे की सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर और विचार किए जाने की संभावना है।यह घटनाक्रम लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के खिलाफ चल रही जांच की गंभीरता को और बढ़ा देता है, और यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका जांच एजेंसियों से निष्पक्षता और पारदर्शिता की उम्मीद करती है। अब देखना होगा कि ED इस सवाल का क्या जवाब देती है और क्या मामले में बड़े आरोपियों के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाए जाते हैं या नहीं।