“उत्तराखंड में निजी स्कूलों को फेल छात्रों को 12वीं में भेजने का निर्देश, बाल अधिकार आयोग ने दिखाया सख्त तेवर”

उत्तराखंड के निजी स्कूलों के छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया है। राज्य के बाल अधिकार आयोग ने राज्य के सभी निजी स्कूलों को आदेश दिया है कि वे फेल हुए छात्रों को 12वीं कक्षा में प्रमोट करें। यह निर्णय राज्य में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके भविष्य को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि निजी स्कूलों को छात्रों के अकादमिक प्रदर्शन के आधार पर किसी भी प्रकार की भेदभावपूर्ण कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। आयोग का यह कदम राज्य में शिक्षा के स्तर और छात्रों की मानसिक स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से उठाया गया है। इस आदेश के बाद, राज्य के निजी स्कूलों में पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए यह राहत की बात है, क्योंकि उन्होंने पिछले साल की परिस्थितियों में परीक्षा नहीं दी थी या फिर कोविड-19 के कारण लागू किए गए लॉकडाउन के कारण उनकी पढ़ाई में व्यवधान आया था। राज्य के बाल अधिकार आयोग का मानना है कि बच्चों के शैक्षिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए और उनका भविष्य सुरक्षित किया जाना चाहिए। आयोग का यह निर्णय निजी स्कूलों द्वारा छात्रों को शैक्षिक दृष्टि से परेशान करने के खिलाफ उठाया गया एक कदम है। आयोग ने राज्य के शिक्षा विभाग को यह सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए हैं कि सभी निजी स्कूल छात्रों को बिना किसी भेदभाव के कक्षा में प्रमोट करें, विशेषकर जब उनकी परीक्षा परिस्थितियों के कारण बाधित हुई हों। आयोग ने यह भी कहा कि 12वीं कक्षा की परीक्षा में छात्रों के शैक्षिक प्रदर्शन का सही मूल्यांकन किया जाएगा और उन्हें एक उचित अवसर दिया जाएगा। बाल अधिकार आयोग का यह कदम उस समय आया है जब कई निजी स्कूलों ने अपने छात्रों को सिर्फ शैक्षिक प्रदर्शन के आधार पर 12वीं कक्षा में प्रमोट करने से इनकार कर दिया था, जबकि कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षा प्रणाली में बड़ी समस्याएं आई थीं। कई छात्र ऐसे थे जिन्होंने ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान अच्छे अंक हासिल नहीं किए या जिनकी परीक्षा स्थगित कर दी गई थी, जिसके कारण वे फेल हो गए थे। आयोग ने कहा कि यह कदम बच्चों के मानसिक और शैक्षिक विकास को बेहतर बनाने के लिए उठाया गया है, ताकि उनका आत्मविश्वास बना रहे और वे भविष्य में अपनी पढ़ाई में अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकें।इस निर्णय के बाद, निजी स्कूलों को छात्रों को उचित मानसिक और शैक्षिक अवसर प्रदान करने के लिए मजबूर किया गया है। बच्चों के हितों को सबसे ऊपर रखते हुए यह कदम शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से उठाया गया है। आयोग ने निजी स्कूलों को चेतावनी दी है कि अगर वे इस आदेश का पालन नहीं करेंगे तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उत्तराखंड के बाल अधिकार आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि छात्रों के शैक्षिक अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए और किसी भी बच्चे को उसके प्रदर्शन के आधार पर भेदभाव का शिकार नहीं होने दिया जाएगा। यह फैसला छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और उनके शैक्षिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, जिससे उन्हें आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने का एक अवसर मिलेगा।

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