
उत्तराखंड, जहां की वादियाँ हरियाली से मुस्कुराती हैं और नदियाँ गुनगुनाती हैं, अब प्रकृति प्रेमियों के लिए एक और सौगात लेकर आ रहा है। राज्य सरकार ईको टूरिज्म को नई दिशा देने जा रही है। इसके तहत हर वर्ष एक ईको टूरिज्म एक्टिविटी कैलेंडर तैयार किया जाएगा जिसमें पर्यावरण-संवेदनशील और रोमांच से भरपूर गतिविधियों जैसे फॉरेस्ट वॉकिंग, नेचर ट्रेल्स, बर्ड वॉचिंग, बटरफ्लाई ट्रेल्स, कैंपिंग और विलेज स्टे जैसी गतिविधियों को शामिल किया जाएगा।
सरकार का उद्देश्य केवल पर्यटन को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि लोगों को प्राकृतिक धरोहरों से जोड़ना और ग्रामीण आजीविका को सशक्त बनाना भी है। ईको टूरिज्म के ज़रिए वन क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे, जिससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी।
वन विभाग द्वारा तैयार की जा रही इस योजना में यह भी ध्यान रखा जाएगा कि पर्यटन गतिविधियाँ स्थानीय जैवविविधता और वन्य जीवन को नुकसान न पहुँचाएँ। इसके लिए सीमित संख्या में पर्यटकों को प्रवेश देने, वनों में प्लास्टिक पर रोक, और प्रशिक्षित गाइड्स के साथ भ्रमण जैसी व्यवस्थाएँ की जाएंगी।
राज्य सरकार ने निर्देश दिया है कि इस कैलेंडर में साल भर की ईको-फ्रेंडली गतिविधियों को तय कर, स्थानीय और बाहरी पर्यटकों को पहले से इसकी जानकारी दी जाए। इससे लोग अपने ट्रिप की योजना बेहतर ढंग से बना सकेंगे और ऑफ-सीजन के समय में भी पर्यटन गतिविधियाँ जारी रहेंगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड का भौगोलिक और पारिस्थितिकीय स्वरूप ईको टूरिज्म के लिए अत्यंत उपयुक्त है। गढ़वाल और कुमाऊं के कई हिस्से पहले से ही पर्यावरण प्रेमियों और ट्रेकर्स के लिए मशहूर हैं, और अब राज्य इन स्थलों को एक संगठित, सुरक्षित और सतत विकास की दृष्टि से विकसित करने की दिशा में गंभीर कदम उठा रहा है।
इस पहल से न केवल उत्तराखंड के प्राकृतिक खजाने को विश्व स्तर पर पहचान मिलेगी, बल्कि पर्यावरण और रोजगार—दोनों को मजबूती मिलेगी। आने वाले समय में उत्तराखंड, सिर्फ देवभूमि नहीं, बल्कि “ईको टूरिज्म हब ऑफ इंडिया” बनने की राह पर अग्रसर है।