
देश में “एक देश, एक चुनाव” (One Nation, One Election) की अवधारणा को लागू करने के प्रयासों के तहत अब केंद्र सरकार द्वारा गठित संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) 20 मई को उत्तराखंड का दौरा करने जा रही है। इस दौरान समिति के सदस्य राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों, प्रशासनिक अधिकारियों, और अन्य प्रमुख हितधारकों से मुलाकात कर उनके विचारों और सुझावों को संकलित करेंगे। यह बैठक उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में प्रस्तावित है, जहाँ समिति राज्य में एक साथ चुनावों को लेकर तकनीकी, सामाजिक और प्रशासनिक पक्षों पर जानकारी एकत्र करेगी।संयुक्त संसदीय समिति का यह दौरा देशभर में चल रही एक व्यापक प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य सभी राज्यों की राय और जमीनी हकीकतों को समझना है, ताकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराए जाने की व्यवहार्यता पर ठोस निष्कर्ष निकाला जा सके। यह विचार लंबे समय से चर्चा में है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मंचों से समर्थन दिया है। उनका मानना है कि इससे न केवल समय और संसाधनों की बचत होगी, बल्कि सरकारें पूरे कार्यकाल में नीतिगत निर्णयों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।उत्तराखंड में समिति के दौरे को लेकर सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रण भेजा गया है, जिनमें भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस, आप (AAP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), समाजवादी पार्टी (SP) सहित अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हैं। इसके अलावा प्रमुख पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद और चुनाव प्रक्रिया से जुड़े विशेषज्ञों को भी आमंत्रित किया गया है ताकि इस विषय पर एक संतुलित और व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त किया जा सके।सूत्रों के मुताबिक, समिति राज्य सरकार के अधिकारियों से भी फीडबैक लेगी कि एक साथ चुनावों के आयोजन में कौन-कौन सी तकनीकी और प्रशासनिक चुनौतियाँ आ सकती हैं। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय और भौगोलिक दृष्टि से जटिल राज्य में चुनावों की लॉजिस्टिक्स, सुरक्षा व्यवस्था और मतदान प्रतिशत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा — यह भी प्रमुख चर्चा का विषय होगा।राज्य के कई राजनीतिक दलों ने पहले ही इस विषय पर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ दी हैं। जहाँ कुछ दलों का मानना है कि यह लोकतंत्र को अधिक स्थायित्व देगा, वहीं कुछ का कहना है कि इससे संविधान की मूल भावना और संघीय ढांचे को नुकसान पहुँच सकता है।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 20 मई को होने वाली यह बैठक इस मुद्दे पर क्या नए दृष्टिकोण सामने लाती है और उत्तराखंड के राजनीतिक एवं सामाजिक वर्ग इसमें क्या रुख अपनाते हैं। यह दौरा न केवल “एक देश, एक चुनाव” को लेकर नई दिशा तय कर सकता है, बल्कि यह पूरे देश की चुनावी राजनीति के भविष्य को भी प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है।