उत्तराखंड में इको सेंसिटिव जोन की पर्यावरणीय क्षमता पर अध्ययन, एफआरआई वैज्ञानिक देंगे रिपोर्ट

उत्तराखंड राज्य के इको सेंसिटिव जोन (ESZ) की पर्यावरणीय वहन क्षमता का अध्ययन शुरू किया गया है। राज्य में बढ़ते पर्यावरणीय दबाव और विकास गतिविधियों के चलते यह आवश्यक हो गया था कि इन संवेदनशील क्षेत्रों की पर्यावरणीय सीमाओं का मूल्यांकन किया जाए। इसके तहत, भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के वैज्ञानिक इन जोन की गहनता से जांच करेंगे और एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेंगे, जिससे राज्य सरकार को इन क्षेत्रों में विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाने में मदद मिल सके।इको सेंसिटिव जोन वह क्षेत्र होते हैं जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और यहां पर किसी भी प्रकार की गतिविधि का सीधा प्रभाव जैविक विविधता, वनस्पति, जल स्रोतों और जैविक पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ सकता है। उत्तराखंड के कई क्षेत्र, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र और इसके आसपास के जंगल, इन जोन में आते हैं। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, जैविक विविधता, जलवायु और प्राकृतिक संसाधन अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, और इनका संरक्षण जरूरी है।इस अध्ययन के तहत, एफआरआई के वैज्ञानिक इन क्षेत्रों में विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेंगे, जैसे जंगलों की बढ़ती कटाई, खनन, जलवायु परिवर्तन, पर्यटन गतिविधियां और अन्य मानव निर्मित दबाव। इसके अलावा, यह अध्ययन यह भी देखेगा कि इन क्षेत्रों की पर्यावरणीय वहन क्षमता को किस तरह से बढ़ाया जा सकता है, ताकि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सके और साथ ही, विकास की प्रक्रिया भी जारी रखी जा सके।एफआरआई द्वारा तैयार की जाने वाली रिपोर्ट में इन संवेदनशील क्षेत्रों की क्षमता का आंकलन होगा और इसे बढ़ाने के लिए संभावित उपायों का सुझाव दिया जाएगा। साथ ही, रिपोर्ट में यह भी बताया जाएगा कि किस प्रकार के विकास कार्य इन क्षेत्रों में किए जा सकते हैं, जो पर्यावरण के लिए कम से कम हानिकारक हों और स्थानीय जैविक विविधता को नुकसान न पहुंचाएं। इस अध्ययन की रिपोर्ट राज्य सरकार को पेश की जाएगी, जो उसे नीति निर्धारण में मददगार साबित होगी।पर्यावरण के लिए यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थल और जल स्रोत इको सेंसिटिव जोन के अंदर आते हैं। यदि इन क्षेत्रों में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखा जाता है, तो न केवल जैविक विविधता को संरक्षित किया जा सकेगा, बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका भी सुनिश्चित हो सकेगी।उत्तराखंड सरकार ने इस अध्ययन को सतत विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण कदम माना है। इसके जरिए राज्य में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के साथ-साथ समाज और अर्थव्यवस्था के बीच एक संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जाएगा।अंततः, यह अध्ययन न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राज्य के विकास और संरक्षण की दिशा में एक मार्गदर्शन प्रदान करेगा, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए उत्तराखंड की प्राकृतिक धरोहर को बचाया जा सके।

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