
देश के लिए ऐतिहासिक क्षण तब आया जब पहली बार ट्रेन जम्मू के कटड़ा स्टेशन से कश्मीर घाटी के श्रीनगर तक पहुंची। इस ट्रेन में 800 सुरक्षाबल के जवान सवार थे, जो बेहद संवेदनशील और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण श्रीनगर में तैनाती के लिए भेजे गए हैं। यह यात्रा न केवल लॉजिस्टिक और इन्फ्रास्ट्रक्चर की दृष्टि से एक मील का पत्थर है, बल्कि यह दर्शाता है कि कश्मीर अब तेजी से मुख्यधारा की कनेक्टिविटी से जुड़ रहा है।इस विशेष ट्रेन ने कटड़ा से श्रीनगर तक का सफर लगभग 12 घंटे में पूरा किया, जिसमें दुर्गम पहाड़ी मार्गों और सुरंगों को पार करते हुए यह ट्रेन घाटी में दाखिल हुई। ट्रेन के पहुंचते ही श्रीनगर रेलवे स्टेशन पर सुरक्षा बलों और रेलवे अधिकारियों द्वारा उसका स्वागत किया गया। यह यात्रा भारत सरकार की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को रेल नेटवर्क से पूरी तरह जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।रेलवे और गृह मंत्रालय के समन्वय से हुई इस यात्रा का उद्देश्य न सिर्फ सैनिकों को तेज़ी से उनके तैनाती स्थल तक पहुंचाना था, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना था कि भविष्य में नागरिकों के लिए भी यह मार्ग उपलब्ध हो सके। सुरक्षाबलों के लिए यह एक सुविधाजनक और समय की बचत करने वाला विकल्प बनकर सामने आया है, जो अब तक सड़क मार्ग से बेहद कठिन और समय लेने वाला होता था।इस रेल संचालन को लेकर स्थानीय लोगों में भी उत्साह देखा गया। लोग रेलवे स्टेशन पर पहुंचे और जवानों का स्वागत किया। यह दृश्य कश्मीर में बदलते माहौल और स्थिरता की ओर एक और कदम की झलक देता है। अब यह उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में नियमित यात्री सेवाएं भी इस मार्ग पर शुरू की जाएंगी।सरकार के इस प्रयास को सामरिक दृष्टिकोण से भी बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है, क्योंकि कश्मीर घाटी में तेज़ और सुरक्षित सैनिक आवाजाही की हमेशा आवश्यकता रही है। इस परियोजना को भारतीय रेलवे की सबसे चुनौतीपूर्ण योजनाओं में से एक माना जाता है, जहां सुरंगों और पुलों के जरिए पहाड़ों को चीरकर पटरियां बिछाई गईं हैं।यह यात्रा केवल एक रेलगाड़ी की नहीं, बल्कि नए कश्मीर की दिशा में देश के बढ़ते कदमों की प्रतीक बन गई है। अब जब घाटी रेल के जरिए जुड़ चुकी है, तो न केवल सुरक्षा बलों के लिए, बल्कि आम लोगों के लिए भी एक नया दौर शुरू होने जा रहा है।