
भूकंप के लिहाज से अति संवेदनशील माने जाने वाले उत्तराखंड में एक बार फिर से बड़े भूकंप की आशंका गहराने लगी है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि राज्य के 250 किलोमीटर लंबे भूभाग में जमीन सिकुड़ने की प्रक्रिया तेज हो गई है, जिससे धरती के नीचे भारी मात्रा में भूकंपीय ऊर्जा जमा हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह स्थिति कभी भी 7 से 8 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाले एक बड़े और विनाशकारी भूकंप को जन्म दे सकती है।यह चेतावनी वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून में आयोजित एक विशेष कार्यशाला के दौरान दी गई। ‘अंडरस्टैंडिंग हिमालयन अर्थक्वेक्स’ विषय पर आयोजित इस वैज्ञानिक संगोष्ठी में देशभर के कई भूकंप विशेषज्ञों और भूवैज्ञानिकों ने भाग लिया। इस दौरान वैज्ञानिकों ने कहा कि उत्तराखंड का यह संवेदनशील क्षेत्र विशेष रूप से टेक्टोनिक गतिविधियों की दृष्टि से अत्यंत सक्रिय है, जहां इंडो-टेक्टॉनिक प्लेट्स के बीच लगातार घर्षण और दाब बन रहा है।वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में जिस गति से दो टेक्टोनिक प्लेटें एक-दूसरे की ओर खिसक रही हैं, उसके परिणामस्वरूप अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा भूगर्भ में जमा हो रही है। यह वही ऊर्जा है, जो वर्षों से दबाव के रूप में जमीन के अंदर मौजूद है और जब यह बाहर निकलती है, तो वह विनाशकारी भूकंप का रूप ले सकती है। ऐसे में आने वाले समय में उत्तराखंड और इसके आसपास के क्षेत्रों में एक बड़ा भूकंप आ सकता है, जिससे भारी जानमाल का नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है।विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि भूकंप की भविष्यवाणी करना तो संभव नहीं है, लेकिन भूगर्भीय गतिविधियों पर लगातार निगरानी और आंकड़ों के विश्लेषण से खतरे की संभावनाओं का पूर्वानुमान जरूर लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने राज्य सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग से अपील की है कि वे समय रहते भूकंप रोधी निर्माण तकनीक को अपनाएं और आम जनता को जागरूक करें ताकि किसी भी संभावित आपदा से निपटने की तैयारियां पहले से की जा सकें।कार्यशाला में यह भी बताया गया कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, टिहरी और चमोली जिले सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में आते हैं, जहां भूगर्भीय हलचलों की तीव्रता अधिक पाई गई है। ऐसे में इन क्षेत्रों में विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। वैज्ञानिकों ने इस बात पर भी जोर दिया कि भूकंप के खतरे को हल्के में न लें, बल्कि इसे एक गंभीर चेतावनी के रूप में देखें और समय रहते तैयारी करें।उत्तराखंड में इससे पहले भी कई बड़े भूकंप आ चुके हैं, जिनमें 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में आए भूकंपों ने भारी तबाही मचाई थी। ऐसे में वैज्ञानिकों की यह चेतावनी राज्यवासियों के लिए एक गंभीर संकेत है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।