
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने उच्च शिक्षा को और अधिक समावेशी तथा सुलभ बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। विश्वविद्यालय ने अब हिंदी और उड़िया भाषाओं में भी मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की है। यह पहल उन छात्रों के लिए विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होगी, जो अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करना चाहते हैं और जिन्हें अंग्रेज़ी भाषा में कठिनाई होती है।
यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के प्रमुख सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जिसका उद्देश्य भारत में क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना है। इग्नू के क्षेत्रीय केंद्र देहरादून के निदेशक डॉ. अनिल कुमार डिमरी ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि इस पहल का मूल उद्देश्य यह है कि भाषा की बाधा किसी छात्र के करियर और शिक्षा के रास्ते में रोड़ा न बने। इग्नू अब छात्रों को उनकी पसंदीदा भाषा में उच्च गुणवत्ता वाली व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करेगा।
डॉ. डिमरी ने बताया कि हिंदी और उड़िया में शुरू किया गया यह एमबीए कोर्स न केवल मातृभाषा में अध्ययन को बढ़ावा देगा, बल्कि यह पाठ्यक्रम अंग्रेज़ी संस्करण की तरह ही गुणवत्ता और मूल्यांकन प्रणाली के उच्च मानकों का पालन करेगा। इसका अर्थ यह है कि इन क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी वही लाभ मिलेगा जो अंग्रेज़ी माध्यम के छात्रों को मिलता है।
कैसे तैयार हुआ यह पाठ्यक्रम?
हिंदी और उड़िया में एमबीए पाठ्यक्रम को इग्नू और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के सहयोग से तैयार किया गया है। इस प्रयास में तकनीक का भी भरपूर सहयोग लिया गया है। पाठ्यक्रम सामग्री के अनुवाद के लिए एआईसीटीई के कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित अनुवाद टूल ‘अनुवादिनी’ का उपयोग किया गया। इस टूल की मदद से अंग्रेज़ी में उपलब्ध कोर्स मटेरियल को क्षेत्रीय भाषाओं में सफलतापूर्वक रूपांतरित किया गया है।
इग्नू की यह पहल देशभर के लाखों ऐसे छात्रों को सशक्त बनाएगी, जो भाषा के कारण उच्च शिक्षा या प्रबंधन की पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। विश्वविद्यालय का अगला लक्ष्य एमबीए कोर्स को अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं—जैसे तमिल, तेलुगु, कन्नड़, पंजाबी, बंगाली, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू और असमिया—में भी शुरू करना है। इसकी तैयारी भी जोरों पर है।
यह एक ऐसा बदलाव है जो न केवल शिक्षा के क्षेत्र में समावेशन को बढ़ावा देगा बल्कि ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को भी मजबूत करेगा। मातृभाषा में एमबीए की सुविधा मिलने से ग्रामीण और दूरदराज के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा अब पहले से कहीं ज्यादा आसान और सुलभ हो गई है।