उत्तराखंड में हाथी सफारी फिर से शुरू करने की तैयारी, जंगल सफर होगा खास

उत्तराखंड के जंगलों में रोमांच और वन्यजीवों से रूबरू होने का अनुभव अब और भी खास होने वाला है। कार्बेट टाइगर रिजर्व (CTR) और राजाजी टाइगर रिजर्व (RTR) में वर्षों बाद हाथी सफारी फिर से शुरू करने की तैयारी जोरों पर है। अगर सब कुछ योजना के अनुसार रहा और कोई तकनीकी या कानूनी अड़चन नहीं आई, तो आने वाले पर्यटन सत्र में पर्यटक हाथियों की पीठ पर सवार होकर जंगल के राजा बाघ, तेंदुए और अन्य दुर्लभ वन्यजीवों का दीदार कर सकेंगे।इन दोनों टाइगर रिज़र्वों में अभी तक केवल वाहनों के ज़रिए सफारी होती रही है, जिसमें निश्चित समय और जोनों में पर्यटकों को जंगल की सैर कराई जाती है। लेकिन वन विभाग इस बार पर्यटन को और अधिक जीवंत, रोमांचक और पारंपरिक बनाने की दिशा में काम कर रहा है। हाल ही में राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में इस विषय पर गंभीर चर्चा की गई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि कार्बेट और राजाजी दोनों पार्कों में हाथी सफारी को फिर से शुरू किया जाएगा।गौरतलब है कि वर्ष 2018 में हाईकोर्ट द्वारा हाथी सफारी पर रोक लगा दी गई थी। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने इस निर्णय पर स्थगन आदेश दिया था, जिससे रास्ता फिर से साफ होता नजर आ रहा है। वन विभाग अब उस फैसले को आधार बनाकर राजकीय हाथियों के माध्यम से ही हाथी सफारी शुरू करने की प्रक्रिया में जुटा है।कार्बेट टाइगर रिजर्व में वर्तमान में 15 और राजाजी टाइगर रिजर्व में 7 हाथी हैं। इन हाथियों का उपयोग अभी गश्त और रेस्क्यू ऑपरेशनों में किया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में, जहाँ वाहन या पैदल जाना संभव नहीं होता, हाथी बेहद उपयोगी साबित होते हैं। हालांकि सफारी की अनुमति मिलने पर सभी हाथियों का उपयोग पर्यटकों के लिए नहीं किया जाएगा, केवल चुने हुए हाथियों को ही विशेष रेंज में लगाया जाएगा।संभावना है कि कार्बेट के ढिकाला और बिजरानी जोन तथा राजाजी के चीला रेंज में हाथी सफारी की शुरुआत की जाएगी। प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) रंजन मिश्रा के अनुसार, टाइगर रिजर्व का एक निर्धारित मैनेजमेंट प्लान होता है जिसमें हाथी सफारी की व्यवस्था भी शामिल होती है। ऐसे में अनुमति की प्रक्रिया राज्य स्तर पर ही पूरी हो सकती है। विभागीय कोशिश है कि सभी औपचारिकताएं जल्द पूरी करके अगले पर्यटन सत्र में यह रोमांचक सफारी पर्यटकों के लिए खोली जा सके।वन विभाग की इस पहल से न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता भी बढ़ेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर भी मिलेंगे। गजराजों के कंधों पर सवार होकर जंगल का राजा देखने का सपना अब फिर से साकार होने जा रहा है।

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