पंचायत सीजन 4 रिव्यू: फुलेरा गांव की मिट्टी में अब वो सोंधी खुशबू नहीं, जैसे दिल की बात मशीन से करवा दी गई हो

बीते कुछ दिनों से मैं भी अपने फुलेरा, यानी अपने गांव में हूं। सुबह की ठंडी हवा, बिजली की आंख मिचौली, खेतों की हरियाली, और गांव की चौपाल में होने वाली राजनीति — ये सब वहीं हैं, जस के तस। मगर जब ‘फुलेरा’ को वेब सीरीज के परदे पर देखा, तो दिल जैसे भारी हो गया। ‘पंचायत सीजन 4’ ने जिस तरह से अपने ही बनाए गांव की आत्मा को छोड़ दिया है, वो हर उस दर्शक को चुभेगा जिसने इस सीरीज को अपनी असलियत की वजह से दिल से चाहा है।इस बार के फुलेरा में वो सोंधी मिट्टी की खुशबू नहीं है, न वो नमी है जो इससे पहले के सीजनों में थी। यहां सब कुछ स्क्रिप्ट के फार्मूले में फिट कर दिया गया है — जैसे गांव की बात मशीन से करवाई जा रही हो।

गांव की असल कहानी अब सिर्फ हमारे गांवों में बची है

आज भी असल फुलेरा, हमारे गांवों में सांस ले रहा है। यहां 24 घंटे बिजली की आंख मिचौली जारी है। खंड विकास कार्यालय और ग्राम पंचायत के बीच योजनाएं पेंडिंग पड़ी रहती हैं, फाइलें धूल खा रही होती हैं। मनरेगा के काम भी ठेके पर होने लगे हैं, और स्कूल के मास्टर पहले से जनगणना और चुनाव की ड्यूटी का भार सोचकर तनाव में हैं।गांव की राजनीति अब भी वहीं मंदिर के बरामदे, पान की दुकान और चाय की थड़ी पर चल रही है, लेकिन सीजन 4 के ‘फुलेरा’ में ये सब कहीं नजर ही नहीं आता। न तो अब दिशा मैदान को जाते प्रधान जी की चाभी खोती है, न भुतहा पेड़ के नीचे लेटे प्रह्लाद चा की आंखों में वो चमक है।

कहानी बनी स्क्रिप्ट की बंद पोटली

पिछला सीजन जहां खत्म हुआ था, वहां से आगे बढ़ने की पूरी संभावनाएं थीं। ‘गोली किसने चलाई’ वाला सस्पेंस तो लगभग एक “कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा” जैसे सवाल की तरह टांगा गया था, लेकिन सीजन 4 ने न सिर्फ उस सवाल को टाल दिया, बल्कि पूरी दिशा ही बदल दी।अब पंचायत सीजन 4 एक नई पगडंडी पर चल पड़ा है — ऐसी पगडंडी जिसे जबरन बनाया गया है, न कि गांव की जानी-पहचानी मिट्टी पर खुद से उग आया हो। ये कहानी एक ऐसी दरवाजे की तरह लगती है, जो आषाढ़ की बारिश में फूल गया हो — जिसे बंद करने में जितनी मेहनत लगती है, उतनी ही मेहनत इसमें कहानी ढूंढने में लग रही है।

कलाकार क्या करें जब किरदार ही खोखले हों?

जब जितेन्द्र कुमार, रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, फैसल मलिक, चंदन रॉय, सानविका और पंकज झा जैसे शानदार कलाकार किसी स्क्रिप्ट में हों, तो दर्शकों की उम्मीदें खुद-ब-खुद ऊंची हो जाती हैं। लेकिन इस बार पंचायती तंत्र की सच्चाई के बजाय स्क्रीन पर ‘जबरन रस पैदा करने वाली राजनीतिक रस्साकशी’ हावी हो गई।फुलेरा ग्राम पंचायत चुनाव में मंजू देवी और क्रांति देवी आमने-सामने हैं, लेकिन लड़ाई असल में उनके पतियों की है — जिसकी नींव पर राजनीति की चालें खेली जा रही हैं।शुरुआती एपिसोड भले ही ‘निंदा रस’ के शौकीनों को थोड़ा आकर्षित कर लें, लेकिन जैसे-जैसे कहानी बढ़ती है, उसमें मौलिकता की कमी और स्क्रिप्ट का बनावटीपन साफ झलकने लगता है।

गायब हो गया चौकड़ी का जादू

‘पंचायत’ की असली जान चार किरदारों की चौकड़ी थी — सचिव जी, विकास, प्रह्लाद चा और प्रधान जी। इनकी आपसी बॉन्डिंग ही वो धागा था जो पूरी कहानी को एक सूत्र में बांधती थी। इस बार ये चौकड़ी मानो एक दूसरे से अजनबी हो गई हो।न पहले जैसा अपनापन है, न गर्मजोशी, न ही प्रह्लाद और विकास के बीच की वो इमोशनल केमिस्ट्री जो पहले सीजन में रुला देती थी। यहां तक कि प्रधानजी का मज़ाहिया लहजा भी जैसे बेरंग हो गया है।नीना गुप्ता और सुनीता राजवार का आमना-सामना तो भरपूर प्रचारित किया गया, लेकिन पूरी सीरीज में दोनों के बीच एक भी दमदार टकराव नहीं हो सका।

रघुवीर यादव और नीना गुप्ता की अदाकारी रही जानदार

इस सीजन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही रघुवीर यादव और नीना गुप्ता की परिपक्व अदाकारी। उन्होंने जिस तरह से अपने-अपने किरदारों को निभाया, वो पूरे सीजन को कुछ हद तक संभालने में कामयाब रहे।दुर्गेश कुमार (भीषण) इस बार सबसे बड़ी सरप्राइज पैकेज के रूप में सामने आए और कई सीन में वो जितेंद्र कुमार पर भारी पड़े।सान्विका का चेहरा अब भी मासूमियत से भरा हुआ है, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें किसी अनुबंध (contract) के चलते दूसरी सीरीज में मौका नहीं मिल पा रहा — वरना वो एक सशक्त अभिनेत्री बनकर उभर सकती थीं।

सीजन को खींचने की जल्दबाजी दिखी

‘पंचायत’ सीजन 3 की समाप्ति जहां एक बड़े क्लिफहैंगर पर हुई थी, वहां से कहानी को नई ऊंचाई मिलनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। OTT प्रबंधन ने पहले ही पांचवे सीजन की मंजूरी दे दी, और शायद इसी वजह से सीजन 4 एक ट्रांजिशनल, मतलब भराव सीजन बनकर रह गया। ‘पंचायत’ जैसी सीरीज से लोग इसलिए जुड़ते हैं क्योंकि वह गांव की उस सच्चाई को सामने लाती है, जो टीवी और फिल्मों से दूर होती जा रही है। लेकिन चौथे सीजन में फुलेरा एक बनावटी गांव लगने लगता है — जहां हर दृश्य स्क्रिप्ट से चिपकाया गया है, महसूस नहीं किया गया।अब भी अगर मेकर्स अपने दर्शकों की असली उम्मीदों को समझें और पांचवें सीजन को पुराने फुलेरा की मिट्टी में लौटाएं — तो शायद ये ब्रांड फिर से वही आत्मा पा सके, जिससे इसने अपनी पहचान बनाई थी।

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