
मुंबई से एक अनोखा और भावनात्मक मामला सामने आया है, जहाँ एक माँ अपने दिवंगत बेटे की आख़िरी निशानी को बचाने के लिए कोर्ट की शरण में पहुँची है। मामला बॉम्बे हाईकोर्ट का है, जहाँ एक महिला ने फर्टिलिटी क्लिनिक से अपने मृत बेटे का फ्रीज़ किया हुआ वीर्य (स्पर्म) सौंपने की इजाज़त माँगी है।महिला का बेटा कैंसर से पीड़ित था और इलाज के दौरान डॉक्टरों की सलाह पर उसने अपना वीर्य एक फर्टिलिटी सेंटर में फ्रीज करवा दिया था। हालांकि, बेटे की असामयिक मृत्यु के बाद जब माँ ने वीर्य को प्राप्त करने की कोशिश की, तो फर्टिलिटी क्लिनिक ने देने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने दिया वीर्य को सुरक्षित रखने का आदेश
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए क्लिनिक को यह निर्देश दिया कि वे फिलहाल उस स्पर्म सैंपल को सुरक्षित रखें। न्यायमूर्ति मनीष पिताले ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर सुनवाई के दौरान यह वीर्य खराब हो गया, तो याचिका का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। इसलिए मामले की पूरी सुनवाई तक वीर्य को नष्ट न किया जाए।
बेटे की इच्छा बनी विवाद की वजह
महिला ने कोर्ट में बताया कि कैंसर के इलाज के दौरान उसके बेटे को डॉक्टरों ने बताया था कि कीमोथेरेपी से उसकी प्रजनन क्षमता समाप्त हो सकती है। इसीलिए बेटे ने बिना परिजनों से चर्चा किए, क्लिनिक के एक फॉर्म में यह ऑप्शन चुना था कि उसकी मृत्यु के बाद वीर्य को नष्ट कर दिया जाए। बेटा 16 फरवरी को इस दुनिया से चला गया, और उसने कोई वसीयत भी नहीं छोड़ी।
माँ की भावनात्मक अपील
मृतक की माँ का कहना है कि वह अपने बेटे की याद को आगे बढ़ाना चाहती है। वह चाहती हैं कि एक सरोगेसी प्रक्रिया के माध्यम से उनके बेटे का वंश बढ़े। माँ ने कहा कि वह इस वीर्य से बच्चा जन्म देकर अपने बेटे की विरासत को जिंदा रखना चाहती हैं। उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई है कि इस मानवीय भावना को समझा जाए और उन्हें बेटे का वीर्य सौंपा जाए।
कानून और संवेदनाएं आमने-सामने
यह मामला सिर्फ कानूनी दायरे में सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भावनाएं, नैतिकता और सामाजिक स्वीकार्यता भी गहराई से जुड़ी हैं। कोर्ट को यह तय करना है कि एक मृत व्यक्ति की पूर्व स्वीकृति अधिक महत्वपूर्ण है या उसकी माँ की भावनात्मक अपील। आने वाले समय में यह फैसला न केवल कानून, बल्कि मेडिकल एथिक्स के लिए भी मिसाल बन सकता है।