
ठाणे, महाराष्ट्र | 8 जुलाई 2025 — महाराष्ट्र के ठाणे जिले की मीरा रोड पर उस समय माहौल गरमा गया, जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के दर्जनों कार्यकर्ता भाषा विवाद के मुद्दे को लेकर रैली निकालने पहुंचे। ये रैली हाल ही में घटी हिंदी न बोलने पर थप्पड़ मारने की एक घटना के खिलाफ थी। विरोध प्रदर्शन की शक्ल में यह रैली जैसे ही सड़कों पर बढ़ी, पुलिस ने तुरंत कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया, क्योंकि इस रैली की कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी।
क्या है मामला?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब मीरा रोड इलाके में एक महिला को कथित तौर पर हिंदी न बोलने की वजह से एक शख्स ने थप्पड़ मार दिया। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और देखते ही देखते यह मामला भाषाई अस्मिता बनाम भाषाई जबरदस्ती का रूप ले बैठा। MNS ने इस घटना को मराठी भाषा और मराठी मानुष के सम्मान से जोड़ते हुए प्रदर्शन की घोषणा की थी।
MNS की प्रतिक्रिया: ‘मराठी के सम्मान से समझौता नहीं’
MNS के स्थानीय पदाधिकारियों का कहना है कि मराठी भाषा को लगातार हाशिये पर डालने की कोशिश हो रही है। कार्यकर्ताओं का कहना था कि महाराष्ट्र में मराठी बोलने वालों को दबाने या अपमानित करने की कोई भी घटना बर्दाश्त नहीं की जाएगी। रैली का उद्देश्य इसी विरोध को प्रकट करना था। हालांकि पुलिस ने बिना अनुमति रैली निकालने और कानून-व्यवस्था को खतरे में डालने के आरोप में कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया।
फडणवीस की प्रतिक्रिया: ‘कानून को हाथ में नहीं लेने देंगे’
राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“रैली के आयोजकों ने प्रशासन से कोई अनुमति नहीं ली थी। महाराष्ट्र में हर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार है, लेकिन कानून-व्यवस्था को खतरे में डालने का अधिकार किसी को नहीं है।“
उन्होंने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि सरकार मराठी भाषा के सम्मान को लेकर प्रतिबद्ध है, लेकिन किसी भी तरह की उग्रता या हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
राजनीतिक गरमाहट तेज
MNS के इस आंदोलन ने राजनीतिक हलकों में गर्मी पैदा कर दी है। जहां कुछ स्थानीय राजनीतिक दल इसे मराठी अस्मिता की आवाज़ बता रहे हैं, वहीं कुछ विपक्षी दल इस रैली को राजनीतिक स्टंट करार दे रहे हैं। हालांकि, आम जनता में इस पूरे मामले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
निष्कर्ष: भाषा नहीं, भावनाओं की लड़ाई?
मीरा रोड की इस घटना ने एक बार फिर यह बहस खड़ी कर दी है कि भाषा के नाम पर समाज को बांटना कहां तक उचित है? क्या किसी राज्य की राजभाषा के सम्मान के लिए हिंसा या उग्र प्रदर्शन एकमात्र उपाय है? पुलिस फिलहाल हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं से पूछताछ कर रही है और हालात पर नजर बनाए हुए है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह मामला राजनीति और जनभावनाओं के किस मोड़ पर जाकर ठहरेगा।