हरिद्वार में शुरू हुई कांवड़ यात्रा, कनखल में शिव रूप में विराजेंगे आशुतोष

हरिद्वार, 11 जुलाई — आस्था, तप और भक्ति की त्रिवेणी मानी जाने वाली कांवड़ यात्रा आज से श्रावण मास की प्रतिपदा तिथि के साथ शुभारंभ हो गई है। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व की है, बल्कि जनसमूह की उस सामूहिक श्रद्धा का प्रतीक है, जो शिवभक्ति में पूर्णतः लीन होकर स्वयं को तपस्वी की भांति झोंक देता है।श्रावण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी तिथि तक, कांवड़िये हरिद्वार की हर की पैड़ी से गंगाजल लेकर पैदल यात्रा प्रारंभ करेंगे और उसे अपने-अपने राज्यों — उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश — के गांवों, नगरों और कस्बों के स्थानीय शिवालयों में चढ़ाएंगे। यह जलाभिषेक श्रावण मास की शिव चौदस को किया जाएगा, जो इस वर्ष 23 जुलाई, बुधवार को पड़ रही है।विशेष बात यह है कि इस वर्ष एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तीनों तिथियां एक साथ पड़ रही हैं, जिससे त्रयोदशी का क्षय हो जाएगा और शिव चौदस का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण बन जाएगा।

तीन महायात्राओं में पहली — कांवड़ यात्रा

श्रावण मास में शिवभक्तों की तीन प्रमुख महायात्राएं होती हैं।

  1. कांवड़ यात्रा — जिसमें हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख, देवप्रयाग जैसे पवित्र स्थलों से गंगाजल लेकर शिवालयों में अर्पण किया जाता है।
  2. अमरनाथ यात्रा — जिसमें श्रद्धालु जम्मू-कश्मीर के पवित्र अमरनाथ गुफा में बर्फ से स्वयंभू रूप में बने शिवलिंग के दर्शन हेतु कठिन यात्रा करते हैं।
  3. कैलाश मानसरोवर यात्रा — यह सबसे कठिन यात्रा मानी जाती है, जिसमें शिवभक्त तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील की यात्रा करते हैं।

इन तीनों यात्राओं में कांवड़ यात्रा अपनी जनसंख्या, भक्ति भाव और ऊर्जा के कारण विशेष आकर्षण का केंद्र रहती है।

धर्मनगरी बना शिवधाम, कनखल में होंगे भोलेनाथ

कांवड़ यात्रा के साथ ही हरिद्वार और विशेष रूप से कनखल में शिवभक्ति का विशेष वातावरण बन गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन काल में कनखल के राजा दक्ष ने ब्रह्मपुत्र यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था। यह प्रसंग शिवजी के अपमान और बाद में सती के आत्मदाह से जुड़ा है। किंवदंती है कि काल के उसी प्रथम खंड का वचन निभाने के लिए भोलेनाथ श्रावण मास में स्वयं कनखल आते हैं और एक माह वहीं प्रवास करते हैं।इस मान्यता के अनुसार, शुक्रवार को भगवान शिव का आगमन कनखल में होगा और वे पूरे श्रावण मास में वहीं विराजमान रहेंगे।

आस्था का सैलाब, जयघोष से गूंजा हरिद्वार

जैसे ही यात्रा का शुभारंभ हुआ, “हर हर महादेव” और “बम बम भोले” के उद्घोषों से हरिद्वार की गलियां, घाट, बाजार और शिवालय गूंज उठे। जगह-जगह सेवा शिविर, स्वास्थ्य जांच केंद्र, जल वितरण स्थल, और भंडारे लगने शुरू हो गए हैं। प्रशासन ने भी इस भारी जनसैलाब को संभालने के लिए चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था की है। ड्रोन कैमरे, सीसीटीवी निगरानी, ट्रैफिक कंट्रोल, मेडिकल इमरजेंसी रेस्पॉन्स जैसे इंतज़ामों को अंतिम रूप दे दिया गया है।

शिवभक्ति में डूबे कांवड़िये

कांवड़ भरने के लिए श्रद्धालु कई दिनों से हरिद्वार पहुंच रहे हैं। कुछ कांवड़िये दंडी कांवड़ लेकर चलते हैं, जिसमें वे पूरी यात्रा जमीन पर लेट-लेट कर पूरी करते हैं। कुछ दौड़ते हुए कांवड़ यात्रा करते हैं, जिन्हें डाक कांवड़ कहा जाता है। सभी की मंज़िल एक — अपने इष्ट शिव के चरणों में गंगाजल अर्पण कर उनसे कृपा प्राप्त करना।यह यात्रा न केवल आत्मिक शुद्धि का माध्यम है, बल्कि सामूहिक अनुशासन, सेवा, सहनशीलता और भक्ति की पराकाष्ठा का जीता-जागता प्रमाण भी है।

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