
उत्तराखंड में इस बार का त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव केवल एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि राजनीति में युवा नेतृत्व के उभार का मंच बनकर सामने आया है। गांवों की सरकार बनाने के लिए युवाओं ने जोश, जुनून और जनसेवा की भावना के साथ मैदान में उतर कर यह संकेत दे दिया है कि अब ग्रामीण राजनीति की बागडोर नई पीढ़ी के हाथों में जाने को तैयार है।
जहां पहले प्रधान, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्य जैसे पदों पर आमतौर पर बुजुर्ग और अनुभवी लोग ही दिखाई देते थे, वहीं इस बार युवा प्रत्याशी नई सोच और ऊर्जा के साथ चुनावी मैदान में डटे हुए हैं। ये युवा राजनीति को केवल पद प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि विकास और बदलाव का जरिया मानते हैं।
छात्र राजनीति से पंचायत तक: युवाओं का सफर
राज्य की राजधानी देहरादून स्थित डीएवी कॉलेज की छात्र राजनीति में सक्रिय रहे कई युवा इस बार पंचायत चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं। ये छात्रनेता अब शहर की राजनीति की समझ और अनुभव को अपने गांवों की प्रगति में लगाना चाहते हैं।
डीएवी कॉलेज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सिद्धार्थ राणा, क्षेत्र पंचायत रौंदेली से क्षेत्र पंचायत सदस्य पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। सिद्धार्थ का कहना है कि शहर में राजनीतिक बारीकियों को सीखने के बाद वह अपने गांव लौटे हैं, ताकि अपने क्षेत्र में सही मायनों में सेवा कर सकें। इसी प्रकार पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष प्रेमचंद नौटियाल, क्षेत्र पंचायत मशक से बीडीसी के रूप में चुनावी मैदान में हैं। वे बुजुर्गों के आशीर्वाद और युवाओं के साथ मिलकर क्षेत्र को आगे ले जाने की बात कह रहे हैं।
श्याम सिंह चौहान, जिन्होंने डीएवी कॉलेज से एनएसयूआई के टिकट पर छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था, अब जिला पंचायत रायगी से सदस्य पद के लिए मैदान में हैं। श्याम का सपना है कि उनका क्षेत्र विकास के नए मुकाम पर पहुंचे।
इसी तरह पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष प्रमेश रावत, क्षेत्र पंचायत 10 प्यूनल से बीडीसी पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं डीएवी की वरिष्ठ छात्र नेता अंकिता पाल ग्राम सभा खोलिया गांव (अस्कोट) से ग्राम प्रधान पद पर चुनाव लड़ रही हैं।
युवा नेता नित्यानंद कोठियाल भी क्षेत्र पंचायत बुढ़वां से बीडीसी के रूप में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इन सभी का उद्देश्य एक ही है—राजनीति को सेवा का माध्यम बनाना और अपने क्षेत्र को एक नई दिशा देना।
अब सिर्फ नेता नहीं, विकास के प्रतिनिधि बनना है
इन युवाओं का कहना है कि उनका मकसद सिर्फ चुनाव जीतना नहीं है, बल्कि अपने क्षेत्र में विकास की नई इबारत लिखना है। वे अपने गांवों में अस्पताल, खेल मैदान, बरातघर, पार्क, कॉलेज, श्मशान घाट जैसी बुनियादी सुविधाएं विकसित करना चाहते हैं।
इसके अलावा बुजुर्गों, विधवाओं, दिव्यांगजनों की पेंशन योजनाएं, युवाओं के लिए स्वरोजगार और शिक्षा, और हर गांव तक सरकारी योजनाओं की सीधी पहुंच उनकी प्राथमिकता में है।
इन युवाओं का कहना है कि अब समय आ गया है कि बुजुर्गों को चुनावी राजनीति से विराम मिले, और वे केवल मार्गदर्शक की भूमिका निभाएं। युवा प्रतिनिधि उनके सम्मान और सेवा के साथ ही उनके सपनों को साकार करने का जिम्मा निभाएंगे।
निष्कर्ष: पंचायत राजनीति में बदलाव की बयार
उत्तराखंड का पंचायत चुनाव इस बार एक सामाजिक और राजनीतिक बदलाव का संकेतक बनकर सामने आया है। जहां कभी बुजुर्गों का वर्चस्व होता था, आज वहीं युवा नेतृत्व आगे आकर नए दृष्टिकोण और ऊर्जा के साथ ग्रामीण विकास की तस्वीर बदलने को तैयार है। यह केवल राजनीति की प्राथमिक पाठशाला नहीं, बल्कि राजनीतिक नेतृत्व का नवोन्मेषी युग भी बन सकता है—जिसमें सेवा, समाधान और सामूहिक प्रगति की भावना नज़र आती है।