नई दिशा में ‘पंचायत सीजन 4’: गांव की गलियों से राजनीति की राह तक, भावनाओं के धागे से बुनी कहानी

‘पंचायत’ वेब सीरीज़ का हर सीज़न दर्शकों के दिलों में खास जगह बना चुका है। गांव की राजनीति, देसीपन और ह्यूमर से भरपूर इस सीरीज़ के पिछले तीन सीज़न ने ज़बरदस्त लोकप्रियता हासिल की थी। ऐसे में जब सीज़न 4 आया, दर्शकों की उम्मीदें और भी ज्यादा बढ़ गई थीं। लेकिन इस बार कहानी उम्मीदों पर पूरी तरह खरी नहीं उतरती।

सीजन की शुरुआत हल्के-फुल्के अंदाज़ में होती है—वही देसीपन, वही मज़ेदार सिचुएशन्स और वही दिल को छूने वाले पल। पहले कुछ एपिसोड में पुराने पंचायत फॉर्मूले की झलक मिलती है, जैसे सचिव जी का भूषण से शराब के नशे में माफी मांगना, या मंजू देवी का अपने पति पर फनी ताना मारना। विधायक जी का बनराकस के साथ भोजपुरी गाने पर डांस और विनोद को पार्टी में शामिल करने की कोशिश जैसे दृश्य वाकई देखने लायक हैं।

लेकिन जैसे-जैसे सीजन आगे बढ़ता है, कहानी का कनेक्शन थोड़ा कमजोर होता दिखता है। 5वें और 6वें एपिसोड के बाद ऐसा लगता है कि शो की रफ्तार धीमी हो गई है। सीन बिखरे-बिखरे से लगते हैं और मज़ा थोड़ा कम हो जाता है। सीजन के अंतिम भाग में पंचायत चुनाव, क्रांति देवी और बनराकस की चालाकियों पर ज्यादा फोकस किया गया है, लेकिन यहां सिचुएशन उतनी दमदार नहीं बन पाई जितनी पहले होती थी।

‘पंचायत’ की सबसे खास बात उसका मुख्य चौकड़ी थी—प्रधान, सचिव, प्रह्लाद चा और विकास। लेकिन इस बार उनकी बॉन्डिंग उतनी मज़बूत नहीं दिखती। सचिव और रिंकी की लव स्टोरी भी इस बार बैकफुट पर है, जो दर्शकों को थोड़ा खलती है। हालांकि, यह लव एंगल अब भी लोगों को सीरीज़ से जोड़े रखता है।

निर्देशन की बात करें तो दीपक मिश्रा और अक्षत विजयवर्गीय ने शुरुआत में ‘पंचायत’ का पुराना स्वाद बरकरार रखा, लेकिन जैसे-जैसे सीज़न का अंत आता है, लगता है मानो जल्दबाज़ी में एपिसोड निपटाए गए हों। कुछ सीन खिंचे हुए लगते हैं और एक जैसे सिचुएशन बार-बार आने से शो बोरिंग हो जाता है।

एक्टिंग की बात करें तो जीतेंद्र कुमार यानी सचिव जी ने इस बार रोमांटिक अंदाज़ में भी कमाल किया है। प्रधान जी यानी रघुबीर यादव हमेशा की तरह मजबूत स्तंभ हैं। नीना गुप्ता को इस बार अधिक स्क्रीन स्पेस मिला और उन्होंने शानदार अभिनय किया। फैसल मलिक, चंदन रॉय, और सानविका का प्रदर्शन भी काबिल-ए-तारीफ है। दुर्गेश कुमार (बनराकस) और सुनीता राजवर (क्रांति देवी) ने अपने किरदारों में नफरत पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आशोक पाठक को विनोद के किरदार में इस बार और जगह मिली, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।

देखें या नहीं?
अगर आप ‘पंचायत’ के पक्के फैन हैं, तो आपको यह सीजन थोड़ा कमजोर लग सकता है, खासकर उसका अंत। लेकिन फिर भी, यह सीरीज अपने देसीपन और जमीनी एहसास के लिए देखी जा सकती है। हल्की-फुल्की कॉमेडी और गांव की सादगी पसंद करने वालों के लिए यह शो अब भी एक ट्रीट है।

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