कानून बनने की प्रक्रिया में तेजी लाने की तैयारी? राष्ट्रपति की मंजूरी पर टाइमलाइन तय करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट में इस समय एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर सुनवाई की तैयारी चल रही है, जो भारतीय संघीय ढांचे और विधायी प्रक्रिया से जुड़ा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए एक रेफरेंस (संदर्भ) पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। इस रेफरेंस का विषय अत्यंत गंभीर और दूरगामी प्रभाव डालने वाला है — क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों (State Bills) को राष्ट्रपति या राज्यपाल कितने समय में मंजूरी दें, इस पर कोई कानूनी टाइमलाइन तय की जा सकती है?

मामला क्या है?

राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए इस रेफरेंस में सवाल उठाया गया है कि क्या भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान या कानूनी आधार हो सकता है जिससे यह अनिवार्य किया जा सके कि राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी विधेयक पर एक निश्चित समयसीमा के भीतर निर्णय लें? अक्सर यह देखने में आया है कि राज्य विधायिकाओं द्वारा पारित बिल महीनों या वर्षों तक राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास लंबित रहते हैं, जिससे प्रशासनिक बाधाएं उत्पन्न होती हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गति धीमी पड़ती है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या किया?

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने सभी पक्षों से पूछा है कि क्या वे राष्ट्रपति के रेफरेंस में उठाए गए सवालों पर अपनी राय देना चाहते हैं। इस याचिका पर अगली सुनवाई मंगलवार को तय की गई है।

संविधान पीठ में कौन-कौन हैं?

इस महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे की सुनवाई कर रही पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं।

अनुच्छेद 143 क्या कहता है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह किसी कानूनी या संवैधानिक प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांग सकते हैं। यह सलाह बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन इसका कानूनी और नैतिक महत्व बहुत अधिक होता है।

क्यों है यह मामला अहम?

इस मुद्दे का सीधा संबंध भारत में कानून निर्माण की प्रक्रिया और संघीय ढांचे की मजबूती से है। अगर सुप्रीम कोर्ट यह राय देता है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के निर्णय के लिए टाइमलाइन तय की जा सकती है, तो यह भारत के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में एक ऐतिहासिक सुधार होगा।

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