
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक तलाक और गुजारा भत्ता (एलिमनी) से जुड़े मामले में ऐतिहासिक और समाज में विमर्श को जन्म देने वाली टिप्पणी की। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जो महिलाएं शिक्षित और योग्य हैं, उन्हें केवल इसलिए पति पर वित्तीय निर्भरता नहीं रखनी चाहिए क्योंकि उन्होंने विवाह किया था। आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसी महिलाओं को आत्मसम्मान के साथ अपने बलबूते जीवनयापन की दिशा में काम करना चाहिए।
🏛️ क्या था मामला?
मामला एक उच्च वर्ग के तलाकशुदा दंपती से जुड़ा है, जिनकी शादी मात्र 18 महीने चली थी। तलाक लेने के बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए गुजारा भत्ता की मांग रखी, जो बेहद चौंकाने वाली थी। महिला ने मांग की थी कि उसका पति उसे:
- मुंबई में एक आलीशान फ्लैट दिलवाए,
- 12 करोड़ रुपये नकद राशि दे,
- और साथ ही एक बीएमडब्ल्यू (BMW) लग्ज़री कार भी प्रदान करे।
महिला के मुताबिक, उसके पति की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है, और इसी वजह से वह इन चीजों की हकदार है।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी
महिला की मांग सुनने के बाद कोर्ट ने सवाल उठाया —
“क्या सिर्फ पति की अमीरी इस बात की गारंटी है कि महिला कुछ भी मांग सकती है?”
“क्या पढ़ी-लिखी और काबिल महिला को खुद पर भरोसा नहीं करना चाहिए?”
जस्टिस संजय कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा कि ऐसी महिलाएं जो पढ़ी-लिखी, सक्षम और कार्य करने में योग्य हैं, उन्हें अपने जीवन का नियंत्रण खुद अपने हाथ में लेना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि एलिमनी का मकसद “सिर्फ बेसहारा या ज़रूरतमंद महिला को सुरक्षा देना है, ना कि ऐशोआराम की जिंदगी दिलवाना।”
💬 न्यायपालिका का बदलता रुख
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ विवाह खत्म होने के कारण कोई पक्ष दूसरे से अत्यधिक आर्थिक लाभ की उम्मीद नहीं कर सकता, खासकर जब सामने वाला व्यक्ति आत्मनिर्भर होने की स्थिति में हो।
📌 इस फैसले का सामाजिक महत्व
यह फैसला समाज को एक स्पष्ट संदेश देता है कि विवाह कोई “लाइफटाइम पास” नहीं है जिससे आर्थिक मांगें पूरी की जा सकें। अब समय है कि महिलाएं अपनी योग्यता, शिक्षा और आत्मबल पर भरोसा कर आत्मनिर्भर बनें।