
देहरादून में बहुप्रतीक्षित नियो मेट्रो प्रोजेक्ट को एक बार फिर तगड़ा झटका लगने वाला है। राजधानी में लगभग 8 साल के इंतजार और 90 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद यह प्रोजेक्ट अभी तक अधर में लटका हुआ है। अब हालात ऐसे बन गए हैं कि मेट्रो स्टेशन के लिए आवंटित की गई ज़मीन भी हाथ से फिसलती नजर आ रही है। इस जमीन पर अब पार्क बनाए जाने की मांग तेज़ हो गई है।यह मांग उठाई है झबरेड़ा से भाजपा विधायक देशराज कर्णवाल ने, जो एमडीडीए एचआईजी आईएसबीटी रेजिडेंट वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि आईएसबीटी के पास स्थित मेट्रो स्टेशन के लिए आवंटित भूमि पर पार्क निर्माण की घोषणा की जाए।चौंकाने वाली बात यह है कि पार्क निर्माण की योजना गुपचुप तरीके से तैयार की गई है, जिसकी जानकारी अब तक उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (UKMRC) को तक नहीं है। इस बात की पुष्टि खुद कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक बृजेश कुमार मिश्रा ने की है। उन्होंने साफ कहा कि उन्हें किसी भी पार्क निर्माण प्रस्ताव की जानकारी नहीं है और उनकी योजना के अनुसार उक्त भूमि पर नियो मेट्रो का स्टेशन भवन बनाया जाना है।
2017 से अब तक का सफर: कागज़ों में उलझी मेट्रो
देहरादून में मेट्रो रेल की परिकल्पना 2017-18 में की गई थी। कई अध्ययन और तकनीकी परीक्षणों के बाद आखिरकार नियो मेट्रो को अंतिम विकल्प मानते हुए उसकी डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) तैयार की गई, जिसे 8 जनवरी 2022 को राज्य कैबिनेट से मंज़ूरी दिलाकर केंद्र सरकार को भेजा गया। लेकिन केंद्र से कोई ठोस जवाब न मिलने के कारण यह प्रोजेक्ट वहीं अटक गया। बाद में राज्य सरकार ने अपने स्तर पर इसे आगे बढ़ाने की पहल की और इसे मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाले पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड (PIB) के तहत रखने का निर्णय लिया। लेकिन यहां भी लगातार प्रस्तुतीकरण और चर्चाओं के बावजूद कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
दो कॉरिडोर, 25 स्टेशन और बढ़ती लागत
देहरादून नियो मेट्रो परियोजना में दो प्रमुख कॉरिडोर प्रस्तावित हैं:
- आईएसबीटी से गांधी पार्क तक – कुल लंबाई: 8.5 किलोमीटर
- एफआरआई से रायपुर तक – कुल लंबाई: 13.9 किलोमीटर
इन दोनों कॉरिडोर में कुल 25 स्टेशन प्रस्तावित हैं और पूरी परियोजना की कुल लंबाई 22.42 किमी तय की गई है।
पहले इस परियोजना की अनुमानित लागत 1852 करोड़ रुपये थी, लेकिन वर्षों की देरी और बढ़ती निर्माण लागत के कारण अब यह राशि 2303 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। यही वजह है कि अधिकारी भी इतने बड़े बजट वाले इस प्रोजेक्ट पर निर्णय लेने में झिझक रहे हैं।
क्या यह सपना कभी साकार होगा?
देहरादून की जनता पिछले एक दशक से मेट्रो की उम्मीद लगाए बैठी है, लेकिन यह सपना अब राजनीतिक उठापटक और प्रशासनिक ढिलाई का शिकार होता नजर आ रहा है। एक ओर जहां 90 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि योजना और शोध में खर्च हो चुकी है, वहीं अब मेट्रो स्टेशन की ज़मीन तक पर संकट मंडरा रहा है।यदि समय रहते स्पष्ट नीति और राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई गई, तो देहरादून की मेट्रो परियोजना केवल कागजों पर ही सीमित रह जाएगी, और जनता को फिर से एक अधूरी उम्मीद के सहारे छोड़ दिया जाएगा।