
उत्तरकाशी ज़िले के धराली गांव में मंगलवार को आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने एक बार फिर पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। खीरगंगा नदी में अचानक बादल फटने की घटना ने न केवल जान-माल का भारी नुकसान किया, बल्कि एक बार फिर 2013 की केदारनाथ त्रासदी की भयावह यादों को ताज़ा कर दिया।
अब वैज्ञानिक विश्लेषणों में यह स्पष्ट हो चुका है कि यह कोई सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि जलवायु परिवर्तन के चलते बदलते मौसमी पैटर्न और भूमध्य सागर से उठे पश्चिमी विक्षोभ की वजह से उत्तरकाशी पर ये कहर टूटा।
IIT रुड़की के वैज्ञानिक का बड़ा खुलासा
IIT रुड़की के हाइड्रोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंकित अग्रवाल ने बताया कि उत्तरकाशी की यह आपदा 2013 में केदारनाथ में आई जल प्रलय की तरह ही है, जिसमें पश्चिमी विक्षोभ ने अहम भूमिका निभाई थी।
उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते पश्चिमी विक्षोभ और मानसून दोनों उत्तर और पूर्व की ओर शिफ्ट हो रहे हैं, जिससे इनका हिमालय से टकराव बढ़ गया है। इस टकराव से बादल फटने और अतिवृष्टि की घटनाएं ज्यादा तीव्र और विनाशकारी होती जा रही हैं।
वर्तमान में प्रो. अग्रवाल पॉट्सडैम यूनिवर्सिटी, जर्मनी के साथ एक इंडो-जर्मन परियोजना पर काम कर रहे हैं, जिसमें भारतीय हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व चेतावनी और कारणों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा रहा है।
बदलता पैटर्न – बढ़ते खतरे
प्रोफेसर अग्रवाल के अनुसार, पहले पश्चिमी विक्षोभ अक्टूबर से दिसंबर के बीच सक्रिय होते थे, लेकिन अब ये जून से अगस्त में ही हिमालयी क्षेत्र को प्रभावित करने लगे हैं। यह बदलाव भविष्य के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।
अब पश्चिमी विक्षोभ मध्य भारत से होते हुए हिमालय की ओर बढ़ रहे हैं और भारी मात्रा में नमी साथ लाते हैं, जिससे उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश और बादल फटने जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं।
धराली: प्रकृति का कहर, 20 सेकंड में तबाह हुआ पूरा बाज़ार
मंगलवार को उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित धराली गांव के ऊपर खीरगंगा नदी में दोपहर लगभग 1:50 बजे बादल फटा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सिर्फ 20 सेकंड के भीतर खीरगंगा नदी का मलबा और पानी तेजी से नीचे की ओर बहता हुआ धराली बाजार में घुस गया।
लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागे, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। पूरा बाजार मलबे के ढेर में तब्दील हो गया।
कल्प केदार मंदिर बहा, 70 से ज़्यादा लापता
इस आपदा में प्रसिद्ध कल्प केदार मंदिर भी पूरी तरह बह गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चार लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि करीब 70 लोग अभी भी लापता हैं।
130 से अधिक लोगों को रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। 30 से अधिक दुकानें, होटल, घर और बागान इस तबाही में नष्ट हो गए हैं।
दो बार आया मलबा, कहर हुआ दुगना
स्थानीय लोगों के अनुसार, पहले तेज़ बहाव और मलबे की एक लहर आई, और कुछ देर बाद दूसरी लहर ने फिर से तबाही मचाई। ये दोहरी मार जान-माल की क्षति को और अधिक गंभीर बना गई।
सरकार और प्रशासन की त्वरित प्रतिक्रिया
राहत कार्य में जुटी सेना, SDRF, NDRF
घटना की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन, पुलिस, SDRF, NDRF और सेना की टीमें मौके पर पहुंच गईं। होटलों और घरों में फंसे कई लोगों को बचाया गया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केंद्र सरकार और वायु सेना से दो MI हेलिकॉप्टर और एक चिनूक हेलिकॉप्टर रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए मांगे हैं। लगातार बारिश के कारण उड़ानों में बाधा आ रही है, लेकिन मौसम साफ होते ही एयरलिफ्ट ऑपरेशन तेज़ किया जाएगा।
UCADA की ओर से दो निजी हेलिकॉप्टर भी राहत कार्य के लिए तैयार रखे गए हैं।
राहत शिविर बनाए गए
घटना की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने हर्षिल में राहत शिविर बनाए हैं। DM प्रशांत आर्य और SP सरिता डोवाल मौके के लिए रवाना हो चुके हैं। नुकसान का सटीक आकलन मौके पर ही किया जाएगा।
सबसे ज्यादा नुकसान व्यावसायिक इमारतों को
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर पानी सीधा गांव की बस्ती की ओर आता तो ज़्यादा जान का नुकसान होता, लेकिन पानी बाजार की ओर मुड़ गया, जिससे होटल, दुकानें और रेज़ॉर्ट पूरी तरह तबाह हो गए।
हिमाचल में भी इसी पैटर्न पर आई थी तबाही
प्रोफेसर अग्रवाल ने बताया कि सितंबर 2023 में हिमाचल प्रदेश में जो भारी तबाही हुई थी, वह भी इसी बदलते पश्चिमी विक्षोभ पैटर्न के कारण हुई थी। हिमालयी राज्यों में अब प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता दोनों बढ़ती जा रही है, जिसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन और वैश्विक ऊष्मीकरण है।
क्या कहता है मौसम विभाग
मौसम विभाग ने चेतावनी जारी की है कि अगले कुछ दिनों में उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और ऊधमसिंह नगर में भारी बारिश का ऑरेंज अलर्ट है। देहरादून, नैनीताल, चंपावत और पौड़ी के लिए येलो अलर्ट जारी किया गया है।
निष्कर्ष: चेतावनी नहीं, अब चेतना की जरूरत है
धराली में आई त्रासदी एक बार फिर से ये संकेत दे रही है कि हिमालयी क्षेत्र अब जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार बनने जा रहा है।
जरूरत है कि स्थायी समाधान, वैज्ञानिक प्लानिंग, और तत्काल सुरक्षात्मक उपायों को प्राथमिकता दी जाए। केवल आपदा के बाद राहत कार्य काफी नहीं, अब पूर्व चेतावनी प्रणाली, निर्माण पर नियंत्रण और पारिस्थितिकी के अनुरूप नीति निर्माण समय की मांग है।