
नई दिल्ली, 15 अगस्त — स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा बयान दिया जिसने न केवल देश के किसानों का मनोबल ऊँचा कर दिया, बल्कि भारत की जल कूटनीति में संभावित बड़े बदलाव के संकेत भी दे दिए। अपने संबोधन के एक अहम हिस्से में पीएम मोदी ने सीधे तौर पर सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) का ज़िक्र करते हुए इसे भारत के लिए “अन्यायपूर्ण और एकतरफ़ा” करार दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज देश का हर नागरिक भली-भांति समझ चुका है कि यह संधि भारत के हितों के विपरीत रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले सात दशकों से भारत की नदियों का अनमोल जल पाकिस्तान के खेतों की सिंचाई के लिए बहता रहा, जबकि भारत के अपने किसान पानी के अभाव में संघर्ष करते रहे। “हमारे किसानों ने वर्षों तक सूखे, सिंचाई के अभाव और जल संकट का सामना किया है, जबकि हमारा ही पानी हमारी सीमाओं के पार बहता रहा। यह केवल आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि हमारे किसानों के अधिकारों का खुला हनन है,” मोदी ने कहा।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में ऐलान किया कि अब भारत के जल संसाधनों का प्राथमिक अधिकार भारत के किसानों का होगा। “भारत की नदियों का पानी अब सबसे पहले, सबसे अधिक और सबसे पहले भारत के खेतों के लिए ही इस्तेमाल होगा,” उन्होंने दृढ़ स्वर में कहा। यह बयान पाकिस्तान को लेकर भारत की जीरो टॉलरेंस नीति और राष्ट्रीय संसाधनों की सुरक्षा पर केंद्रित रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी का यह संदेश, सिंधु जल संधि को लेकर भारत की नीति में एक ऐतिहासिक मोड़ ला सकता है। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई इस संधि के तहत भारत ने सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के बहाव का अधिकांश हिस्सा पाकिस्तान को देने पर सहमति जताई थी। आलोचकों का कहना है कि तब से अब तक यह समझौता भारत के लिए एकतरफा नुकसानदायक रहा है।
प्रधानमंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत-पाकिस्तान संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं और सीमा पर सुरक्षा हालात चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं। इस संदर्भ में लाल किले से दिया गया यह सख्त संदेश केवल किसानों के अधिकारों की बात नहीं करता, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्पष्ट संकेत देता है कि भारत अब अपने प्राकृतिक संसाधनों के मामले में समझौता नहीं करेगा।
मोदी के इस भाषण को देशभर में किसानों और राष्ट्रवादी वर्ग से व्यापक समर्थन मिलने की संभावना है। यह घोषणा न केवल जल अधिकारों पर भारत के नए दृष्टिकोण की घोषणा है, बल्कि यह संदेश भी है कि आने वाले समय में भारत अपनी नदियों, खेतों और किसानों के हक की रक्षा के लिए हर स्तर पर तैयार है।