
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से बाहर किए गए मतदाताओं के मामले पर सुनवाई की और चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि जिन लोगों के नाम मतदाता सूची से बाहर हुए हैं, वे ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि आवेदनकर्ता फार्म 6 के साथ आधार कार्ड समेत 11 अन्य दस्तावेजों में से किसी भी दस्तावेज को जमा कर सकते हैं।
राजनीतिक पार्टियों की निष्क्रियता पर हैरानी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह देखकर हैरानी व्यक्त की कि राजनीतिक पार्टियां अभी तक मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख लोगों के नामों पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आई हैं। चुनाव आयोग ने बताया कि अब तक 85 हजार नए मतदाता वोटर लिस्ट में जोड़े गए हैं, जबकि राजनीतिक पार्टियों के बूथ लेवल एजेंट्स के जरिए केवल दो ही आपत्तियां दर्ज कराई गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दिया कि वे अपने कार्यकर्ताओं को यह निर्देश दें कि वे लोगों की मदद करें और उन्हें जागरूक करें, ताकि वे नाम कट जाने की स्थिति में ऑनलाइन आवेदन कर सकें। अदालत ने यह भी कहा कि आवेदक को भौतिक रूप से फार्म जमा करने की जरूरत नहीं है, यह पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन की जा सकती है।
अगली सुनवाई और रिपोर्ट
पीठ ने कहा कि अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी और सभी राजनीतिक पार्टियों को तब तक एक स्टेटस रिपोर्ट जमा करनी होगी। इसमें उन्हें यह बताना होगा कि उन्होंने कितने लोगों की ऑनलाइन फॉर्म भरने में मदद की। चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिए गए कि बूथ लेवल एजेंट्स द्वारा कराए गए आवेदन के लिए एक पर्ची भी आवेदक को प्रदान की जाए।
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि आयोग को यह साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाए कि कोई भी मतदाता सूची से बाहर नहीं है। उन्होंने कहा, “राजनीतिक दल शोर मचा रहे हैं, लेकिन स्थिति उतनी खराब नहीं है। हम पर विश्वास करें और हमें कुछ और समय दें। हम आपको दिखा देंगे कि कोई भी मतदाता सूची से बाहर नहीं है।”
बिहार में मतदाता सूची में बदलाव
14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण 19 अगस्त तक प्रकाशित करे, ताकि एसआईआर में पारदर्शिता बढ़ाई जा सके और पहचान प्रमाण के रूप में आधार कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेज के रूप में अनुमति दी जा सके।
बिहार में मतदाता सूची का यह संशोधन 2003 के बाद पहली बार किया गया। इस प्रक्रिया ने राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। एसआईआर के बाद बिहार में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या, जो पहले 7.9 करोड़ थी, घटकर 7.24 करोड़ रह गई है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय मतदाता सूची से बाहर हुए लोगों के लिए राहत भरा कदम माना जा रहा है। इससे न केवल ऑनलाइन आवेदन की सुविधा बढ़ी है, बल्कि आधार समेत 11 दस्तावेजों से पहचान सुनिश्चित होने के कारण पारदर्शिता भी बढ़ी है। राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग की भूमिका इस मामले में अहम है, और 8 सितंबर को अगली सुनवाई में स्थिति और स्पष्ट होगी।