
पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण शुक्रवार को सीबीआई के स्पेशल मजिस्ट्रेट संदीप सिंह भंडारी की अदालत में बयान दर्ज कराने पहुंचे। यह मामला फर्जीवाड़ा कर भारतीय पासपोर्ट बनवाने और झूठे दस्तावेजों का उपयोग करने के आरोप से जुड़ा है। अदालत ने इस दौरान उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों और प्रस्तुत साक्ष्यों पर कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए।
इस मामले की जांच वर्ष 2011 में सीबीआई ने शुरू की थी, जब शिकायत मिली कि आचार्य बालकृष्ण नेपाल के नागरिक हैं और उन्होंने भारतीय पासपोर्ट फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बनवाया। जांच के दौरान यह भी पाया गया कि उन्होंने खुर्जा के एक शिक्षण संस्थान से फर्जी डिग्री हासिल की। इस शिक्षण संस्थान के पूर्व प्रिंसिपल नरेश चंद द्विवेदी को भी मामले में बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया था, लेकिन वे स्वास्थ्य खराब होने के कारण अदालत में उपस्थित नहीं हो सके। अदालत ने इस पर अपनी स्वीकृति देते हुए उनका बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दर्ज करने की अनुमति दी।
सीबीआई ने वर्ष 2016 में इस मामले में नेपाल सरकार के साथ पत्राचार भी किया था। आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और पासपोर्ट अधिनियम के तहत चार्जशीट दाखिल की गई थी। इसके साथ ही शिक्षण संस्थान के पूर्व प्रिंसिपल नरेश चंद द्विवेदी के खिलाफ भी धोखाधड़ी और जालसाजी का आरोपपत्र दाखिल किया गया।
स्पेशल मजिस्ट्रेट सीबीआई कोर्ट में यह मामला विचाराधीन है। मामले की पिछली सुनवाई में आचार्य बालकृष्ण और नरेश चंद द्विवेदी को सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपने बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया था, लेकिन दोनों उपस्थित नहीं हुए थे। शुक्रवार को आचार्य बालकृष्ण उपस्थित हुए, जबकि नरेश चंद द्विवेदी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से प्रार्थनापत्र दिया कि उनके स्वास्थ्य के कारण वे अदालत में नहीं आ सकते।
अदालत ने आचार्य बालकृष्ण से फर्जी डिग्री, पासपोर्ट फर्जीवाड़ा और अन्य आरोपों के संबंध में विस्तृत पूछताछ की। आचार्य बालकृष्ण ने अपने बयान में मामले की सभी परिस्थितियों पर प्रकाश डाला। अदालत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से नरेश चंद द्विवेदी का बयान दर्ज करने का निर्णय लिया है।
यह मामला उस समय खासा चर्चा में रहा था, जब सीबीआई ने आचार्य बालकृष्ण और उनके सहयोगियों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और पासपोर्ट अधिनियम के तहत चार्जशीट दाखिल की थी। मामले की सुनवाई जारी है और कोर्ट की अगली तारीख पर सभी पक्षों के बयान और साक्ष्यों पर विस्तार से विचार किया जाएगा।
इस घटना ने उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर मीडिया और जनता का ध्यान खींचा है। लोगों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि कैसे ऐसे मामले लंबे समय तक लंबित रह सकते हैं और कानून की प्रक्रिया में कितनी पारदर्शिता होती है।