“वंशवाद का साया: भारतीय राजनीति में बढ़ती घरानों की पकड़”

भारत की राजनीति में वंशवाद की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं, इसका ताज़ा खुलासा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट ने किया है। चाहे देश की लोकसभा हो या राज्यों की विधानसभाएं, हर जगह वंशवाद की बेल तेजी से फैल रही है। आंकड़े बताते हैं कि सत्ता में बैठा हर पांचवां नेता किसी न किसी राजनीतिक घराने की देन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी समय-समय पर वंशवाद पर चोट करते हुए गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से एक लाख युवाओं को राजनीति में लाने की बात कही थी।

रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा में करीब 31% सांसद वंशवाद से आते हैं, यानी वे या तो किसी राजनीतिक परिवार से हैं या फिर अपने घराने की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं, राज्यों की विधानसभाओं में 20% सदस्य वंशवाद की उपज हैं। यह साफ संकेत है कि राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में प्रवेश करना बाहरी लोगों के लिए कहीं अधिक मुश्किल है, क्योंकि यहां पुराने राजनीतिक घराने बेहद मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं।

दिलचस्प बात यह है कि छोटे राज्यों की तुलना में बड़े राज्यों और काडर आधारित पार्टियों में वंशवाद की पकड़ कमजोर पाई गई है। जैसे, तमिलनाडु में केवल 15% और पश्चिम बंगाल में महज़ 9% प्रतिनिधि वंशवादी पृष्ठभूमि से आते हैं। वहीं, झारखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में यह प्रतिशत क्रमशः 28% और 27% है। इससे साबित होता है कि संगठित और वैचारिक आधार पर चलने वाली पार्टियां वंशवाद को रोकने में ज्यादा सक्षम होती हैं, जबकि परिवार या क्षेत्रीय ताकत पर आधारित पार्टियों में इसकी जड़ें गहरी हैं।

एक और अहम पहलू सामने आया है कि वंशवादी राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से कहीं अधिक है। ADR के अनुसार, राजनीति में वंशवादी पृष्ठभूमि से आने वाली महिला जनप्रतिनिधियों का प्रतिशत 47% है, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा सिर्फ 18% है। झारखंड में तो यह स्थिति और चौंकाने वाली है, जहां 73% महिलाएं वंशवादी राजनीति का हिस्सा हैं, वहीं महाराष्ट्र में यह आंकड़ा 69% है। यह दर्शाता है कि महिलाओं के लिए राजनीति का रास्ता खोलने में पारिवारिक पृष्ठभूमि की भूमिका अहम रही है। हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह है कि गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली पहली पीढ़ी की महिला नेताओं के लिए अवसर सीमित हो गए हैं

रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि वंशवाद भारतीय राजनीति की संरचना पर गहरा असर डाल रहा है। लोकतंत्र में जहां जनता की भागीदारी और योग्यता को आधार बनना चाहिए, वहां कई बार परिवार और खून का रिश्ता ही टिकट और सत्ता की गारंटी बन जाता है।

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