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फ्रांस के प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नु ने सोमवार को पद से इस्तीफा दे दिया। बतौर प्रधानमंत्री उनका कार्यकाल एक महीने से भी कम रहा और इसके साथ ही वे 1958 के बाद से फ्रांस के सबसे अल्पकालिक प्रधानमंत्री बन गए।
लेकॉर्नु को 9 सितंबर को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था। हालांकि, मंत्रिमंडल की घोषणा के तुरंत बाद ही उन्हें अपनी पार्टी और विपक्ष दोनों तरफ से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। उनकी टीम में 18 नामों में से 12 पूर्व सरकार के मंत्री शामिल थे, जिससे आलोचनाओं की लहर शुरू हो गई। लेकोर्नु मंगलवार को नेशनल असेंबली में अपनी सरकार का रोडमैप पेश करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
इस इस्तीफे ने फ्रांस की राजनीति में गहराई वाला संकट पैदा कर दिया है और राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रों पर भी दबाव बढ़ गया है। मैक्रों अब तक तीन असफल अल्पमत सरकारों का नेतृत्व कर चुके हैं। लेकोर्नु को फ्रांस के बढ़ते घाटे को कम करने के लिए संसद में संतुलित बजट पारित कराने की चुनौती दी गई थी। 2024 में फ्रांस का घाटा GDP का 5.8% और कर्ज 113% तक पहुंच गया था, जो यूरोपीय संघ के नियमों के अनुसार काफी अधिक है, क्योंकि EU देशों में घाटे को 3% तक सीमित रखा जाता है।
इस बीच, दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली (RN) के नेता जॉर्डन बार्डेला ने पार्टी मुख्यालय में मरीन ले पेन के साथ मीडिया से बात करते हुए संसदीय चुनावों की जल्दी कराने की मांग की। राष्ट्रपति खेमे के भीतर भी असंतोष बढ़ता जा रहा है।