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UP : वर्षों से नहीं सुलझा मतदाता सूची को एक करने का मुद्दा - The Indian Exposure

UP : वर्षों से नहीं सुलझा मतदाता सूची को एक करने का मुद्दा

नगर निकाय, पंचायतीराज संस्थाओं और विधानसभा चुनाव की मतदाता सूची को एक करने का मसला वर्षों से नहीं सुलझ सका है। एक दशक से इस मुद्दे पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच पत्राचार चल रहा है, लेकिन इस दिशा में धरातल पर काम शुरू नहीं हो पाया है।

योगी सरकार 1.0 में भी इस संबंध में तत्कालीन एमएसएमई मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई थी। कमेटी ने दो चरणों में मतदाता सूची को एक करने की प्रक्रिया तय कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। सरकार की ओर से रिपोर्ट भारत निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार को भेजी गई थी। इससे पहले सपा शासन में भी यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया था। लेकिन यह कवायद अब तक मूर्तरूप नहीं ले पाई है।

राज्य निर्वाचन आयोग के तत्कालीन आयुक्त एसके अग्रवाल का कहना है कि जब तक तकनीकी अड़चनों को दूर नहीं किया जाएगा यह संभव नहीं है। पंचायतीराज संस्थाओं व विधानसभा के चुनाव अलग-अलग हैं। विधानसभा चुनाव की सूची बूथ के आधार पर तैयार होती है, जबकि निकाय चुनाव की सूची वार्ड के आधार पर बनती है। विधानसभा चुनाव के लिए परिसीमन 30 साल में एक बार होता है। वहीं, निकाय चुनाव के लिए परिसीमन हर चुनाव से पहले होता है। भारत निर्वाचन आयोग सभी राज्यों के साथ मिलकर इस समस्या का समाधान निकाले तभी यह संभव हो पाएगा।

मॉडल बना रहा है आयोग
राज्य निर्वाचन आयोग के विशेष कार्याधिकारी एसके सिंह का कहना है कि भारत निर्वाचन आयोग में इस पर कवायद चल रही है। आयोग पहले एक मॉडल तैयार कर रहा है, उसके सफल होने के बाद इसे सभी प्रदेशों में लागू किया जाएगा।

यह होगा फायदा 

  • निकाय और विधानसभा चुनाव की मतदाता सूची एक होने से मानव संसाधन, खर्च और समय की बचत होगी 
  • दोनों चुनाव के लिए एक ही बूथ निर्धारित हो सकेगा
  • राजनीतिक दलों को भी चुनाव के लिहाज से अलग-अलग बूथ टीमों का गठन नहीं करना पड़ेगा

ये होगी दिक्कत 

  • समय-समय पर नए निकायों और पंचायतों का गठन होने से मतदाता सूची प्रभावित होगी 
  • निकाय चुनाव से पहले परिसीमन होने से मतदाता सूची का पुनरीक्षण नए सिरे से करना ही होगा
  • मतदाता सूची त्रुटिपूर्ण होने की आशंका बनेगी

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