
उत्तराखंड में स्थित करोड़ों जनों की आस्था के प्रतीक बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री धामों के कपाट खुलने के साथ ही देवभूमि के स्वरूप को परिलक्षित करने वाली चार धाम यात्रा शुरू हो गई है। यह केवल आस्था की ही यात्रा नहीं है, अपितु राज्य की आर्थिकी भी कहीं न कहीं इससे जुड़ी है। देश और विश्व में उत्तराखंड की एक पहचान भी है चार धाम यात्रा। हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु चारों धामों में दर्शन के लिए आते हैं। गत वर्ष यह संख्या 46 लाख के लगभग रही, जबकि इस बार इसके नए प्रतिमान गढ़ने की संभावना है।
यात्रा के लिए हो रहे पंजीकरण तो इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। इस सबके बीच आस्था की इस यात्रा की डगर भी चुनौतियों से भरी हुई है। यद्यपि सरकार की ओर से सभी तरह की तैयारी पूर्ण करने का दावा है, लेकिन व्यवस्था के प्रश्न को छोड़ भी दिया जाए तो मौसम सबसे बड़ी चुनौती है। कारण यह कि चारों धाम उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित हैं और वहां मौसम पल-पल बदलता रहता है। वर्तमान में भी मौसम निरंतर रंग बदल रहा है। मौसम के बदले रुख के बीच चारों धामों में नियमित अंतराल में हो रही बर्फबारी चुनौतियों को बढ़ा रही है।
अच्छी बात यह है कि चार धाम यात्रा को लेकर सरकार ने इस बार फरवरी से ही तैयारियां प्रारंभ कर दी थीं। चार धाम यात्रा को लेकर प्रदेश सरकार की दो प्राथमिकताएं हैं। पहली यह कि यात्रा अवधि में श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो, इसके लिए पहले से पूरी तैयारी रखी जाए और दूसरी चार धाम यात्रा मार्ग की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए अतिरिक्त सतर्कता बरती जाए। 10 वर्ष पूर्व की केदारनाथ आपदा एवं हाल में जोशीमठ में भूधंसाव की घटना के बाद यह बात उठी कि चार धाम, प्रमुख पर्यटन स्थलों और पर्वतीय क्षेत्र के यात्रा मार्ग पर स्थित नगरों-कस्बों की धारण क्षमता का आकलन कर श्रद्धालुओं-पर्यटकों की अधिकतम संख्या का निर्धारण किया जाए।
इस बार भी सरकार ने चारों धाम के लिए प्रतिदिन श्रद्धालुओं की संख्या का निर्धारण तो कर दिया, पर यात्रा आरंभ होते ही इस निर्णय को वापस लेना पड़ा। इसका कारण रहा यात्रा मार्ग पर स्थित कारोबारियों, पंडा समाज, यात्रियों और राजनीतिक दलों का दबाव। ये सब आस्था के नाम पर इस मांग को लेकर एकजुट हो गए कि यात्रियों की संख्या का निर्धारण नहीं होना चाहिए। यह विषय सरकार के लिए एक दोधारी तलवार की भांति कहा जा सकता है। किसी भी आपात स्थिति में यात्रा व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाए जाने लगते हैं, जबकि आम जन तब स्थिति की गंभीरता को समझता है जब कोई घटना हो जाती है।
होना यह चाहिए कि धारण क्षमता के आकलन के आधार पर ही यात्रियों को अनुमति दी जाए और पर्वतीय भूगोल से जुड़ी परिस्थितियों के प्रति उन्हें जागरूक किया जाए। आपदा के अलावा चार धाम यात्रा में सबसे बड़ी चुनौती स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी हुई है। यात्रा मार्गों पर स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के दृष्टिगत 48 स्थायी और 23 अस्थायी चिकित्सा इकाइयां स्थापित की गई ह, जिनमें 29 विशेषज्ञ चिकित्सक एवं 182 चिकित्साधिकारी तैनात किए गए हैं। किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए राजकीय मेडिकल कालेज श्रीनगर, देहरादून एवं एम्स ऋषिकेश को अलर्ट मोड पर रखा गया है।